१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ - हजज मुसम्मन सालिम |
चमन में फूल खिलते हैं खुशी का राज होता है | |
ख़ुशी में झूमते भौंरे मजे से काज होता है | |
खिले जब फूल डाली में नजारा ही बदल जाये , |
हजारों लोग आते हैं अनोखा साज होता है | |
उदासी का सबब होता उजाड़े जब चमन कोई , |
विराने में कहाँ कोई खुशी का काज होता है | |
मजा वैसा नहीं आता अकेले राह चलने में , |
अगर हो साथ में कोई मजे से काज होता है | |
अगर कुछ हो परेशानी बताते हैं अकेले में , |
अगर साथी सफर में हो अलग ही नाज़ होता है| |
उमर तनहा गुजर जाये सहारा ढूढते जग में , |
उजाड़ो ना चमन वर्मा जहाँ बेताज होता है | |
श्याम नारायण वर्मा |
(मौलिक व अप्रकाशित) |
Comment
आदरणीय डा. आशुतोष मिश्र जी रचना भाव पसंद करने के लिए हार्दिक आभार।
आदरणीय श्री गिरिराज जी और श्री समर कबीर जी रचना भाव पसंद करने के लिए और अमूल्य सलाह के लिए हार्दिक आभार।
सादर ............
आदरणीय श्याम जी ..आपकी इस सुंदर ग़ज़ल पर मेरी हादिक बधाई सादर
आदरणीय श्याम भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें । मै आदरणीय मिथिलेश भाई जी बात से सहमत हूँ , कहीं कहीं बात साफ नहीं कह पाये हैं आप । लेकिन आदरणीय समर भाई जी की बात से असहमत हूँ । हिन्दी ग़ज़ल में नुक्तों के अनुसार काफिया बन्दी संभव नहीं है , इस नियम को उर्दू लिपि मे लिखने वालों को ज़रूर निभाना चाहिये , ऐसा मेरा मत है । आगे गुणिजनों के ऊपर है , जैसी सलाह दें ।
आदरणीय , रचना भाव पसंद करने के लिए और अमूल्य सलाह के लिए हार्दिक आभार।
आदरणीय डा. विजय शंकर जी और श्री सोमेश कुमार जी रचना भाव पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार।
सादर
मजा वैसा नहीं आता अकेले राह चलने में
सही कहा जीवन का कोई भी पथ हो ,बिना संग-साथ के सफ़र नीरस और थकाऊ लगता है |अब इस साहित्यिक सफ़र में ही इतने मित्रों के सान्निध्य में सबके सृजन में निखर आ रहा है |बधाई इस प्रस्तुति पर
आदरणीय श्री गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी और श्री मिथिलेश जी रचना भाव पसंद करने के लिए और अमूल्य सलाह के लिए हार्दिक आभार।
सादर
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