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हादसा : लघुकथा : हरि प्रकाश दुबे

“ए बच्ची सुन,यहाँ जेल में किससे मिलने आई है !”

“जी सरकार ,अपने पिताजी से !”

“ पर तू तो भले घर की लगती है, और तेरा बाप जेल में, क्या हुआ था ?”

“साहब एक हादसा हो गया था !”

“कैसा हादसा ,कब ?

“ जी ,सब कहतें हैं मेरे पैदा होने के समय !”

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 31, 2015 at 12:36pm

आ० हरि प्रकाश जी

बहुत शानदार कथा कही आपने . इतनी सांकेतिक की लोगों को दिमाग लड़ना पडेगा कि  हादसा क्या था . पर यही इस कहानी की मूलभूत विशेषता है . मैं आपको इस रचना के लिया ह्रदय से बधायी देता हूँ . सादर .

Comment by Pankaj Trivedi on March 31, 2015 at 10:30am

ओह्ह  !  गज़ब का हादसा... ! 

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