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शुरू है पत्‍नी सेवा दल मुझे हर दम बताती है

दिखा बेलन सुबह से शाम तक मुझको डराती है

बदन में दर्द हो उसके करो तुम तेल से मालिश

रहेगी खुश सदा तुमसे लगाओ जब उसे पालिश

सुबह पूजा करो उसकी न है अब वो चरण दासी

अगर ऐसा न कर पाये मिले भोजन तुम्‍हें बासी

बनाना रोज वो मुझका नया एक डिस सिखाती है

शुरू है पत्‍नी सेवा दल मुझे हर दम बताती है

दिखा बेलन सुबह से शाम तक मुझको डराती है

अगर उसके कभी भाई चले आये तुम्‍हारे घर

न हटना तुम कभी पीछे करो सेवा मिलेगा वर

किसी से सीख लेना तुम पडे़ बतर्न धुलें कैसे

सभी कपडे़ धुलो अब तुम खटो गदहे खटे जैसे

मुझे वो प्‍यार करने की कह बातें रूलाती है

शुरू है पत्‍नी सेवा दल मुझे हर दम बताती है

दिखा बेलन सुबह से शाम तक मुझको डराती है

सजे बारात तारों की चले आना घरो को तुम

समय पे घर नहीं आये समझ लेना हुई वो गुम

करे जो माग तुमसे वो कभी भी ना नहीं करना

भरे हो माँग उसकी तुम हमेशा याद ये रखना

बिना नारी अधूरा नर मुझे कह कर सताती है

शुरू है पत्‍नी सेवा दल मुझे हर दम बताती है

दिखा बेलन सुबह से शाम तक मुझको डराती है

मौलिक एवं अप्रकाशित

अखंड गहमरी

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Comment

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Comment by Akhand Gahmari on April 12, 2015 at 6:47pm

उत्‍साहवर्धन्‍ा के लिए आपको नमन आदरणीय डा विजय शंकर जी

Comment by Akhand Gahmari on April 12, 2015 at 6:46pm

उत्‍साहवर्धन के लिए आपको नमन आदरणीय डा0 गोपाल नारायण श्रीवास्‍तव जी आपको चरण स्‍पर्श

Comment by Akhand Gahmari on April 12, 2015 at 6:45pm

उत्‍साहवर्धन के लिए नमन आदरणीय सौरभ पाड़े जी, आपके सुझाव एवं मार्गदर्शन का फल है जो आप आंशिक रूप से प्रभावित हुये, करे वो माग तुमसे जो कभी तुम ना नहीं करना और मेरी पंक्यिों में बात की सार्थकता का अन्‍तर है जैसा मेरा सोचना है आपको चरण स्‍पर्श

Comment by Akhand Gahmari on April 12, 2015 at 6:43pm

उत्‍साहवर्धन के लिए नमन आदरणीय मिथिलेस वामनकर जी

Comment by Akhand Gahmari on April 12, 2015 at 6:42pm

उत्‍साहवर्धन के लिए नमन आदरणीय जितेन्‍द्र पस्‍टारिया जी

Comment by Akhand Gahmari on April 12, 2015 at 6:42pm

उत्‍साहवर्धन के लिए नमन आदरणीय सोमेश कुमार जी

Comment by somesh kumar on April 2, 2015 at 11:53am

कृपया सेवा-दल लिखें अलग होने से अर्थ ग्रहण भिन्न हो रहा है |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 2, 2015 at 9:52am

बहुत खूब, आदरणीय अखंड जी. पढ़कर मजा आ गया,बधाई इस हास्य प्रस्तुति पर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2015 at 11:45pm

आदरणीय अखंड जी इस हास्य प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2015 at 10:13pm

क्या बात है !! क्या बात है !!!

इस हास्य कविता के शिल्प पर आपने जो श्रम किया है वह आपके दृढ़ निश्चयी होने का परिचायक है. कथ्य प्रस्तुतीकरण में तनिक और इनोवेटिव होना था. फिर भी, आपकी प्रस्तुतियों के स्तर में गुणात्मक परिवर्तन हुआ है भाई अखण्ड गहमरी जी.

मैं दिल से बधाई तथा शुभकामनाएँ दे रहा हूँ.

बनाना रोज वो मुझका नया एक डिस सिखाती है ..  इस पंक्ति में एक को इक ही रखें.

मुझे वो प्‍यार करने की कह बातें रूलाती है  .. यह पंक्ति शिल्प के तौर पर सुधार चाहती है. है न ?

दूसरे, मांग गलती से माग हो गया है.

और करे जो माग तुमसे वो कभी भी ना नहीं करना  को करे जो मांग तुमसे वो कभी तुम ना नहीं करना  करें तो अधिक अच्छा. किन्तु, ऐसा क्य़ॊं करना चाहिये ये मैं नहीं बताऊँगा, बल्कि आप बतायेंगे. :-)))

आज आपने मन खुश कर दिया भाई..

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