चैन से रहते थे कभी
तीन कमरों की छत के साये में
मैं ,मेरे माँ-बाबूजी
मेरी पत्नि
मेरे बच्चे शामिल थे
एक 'हम ' शब्द में ।
धीरे धीँरे
'हम ' शब्द बिखर गया
मा-बाबूजी बाहर वाले
कमरे में भेज दिये गयेे
अब वो दोनों हो गये थे
' हम ' और माँ-बाबूजी
अब हम ' का विस्तार
मैं,मेरी पत्नि,मेरे बच्चों
तक सिमट गया था
माँ -बाबूजी 'और' हो चुके थे ।।
मेरा बेटा भी अब
बाल बच्चेदार हो गया हैे
'हम ' शब्द आतुर है
एक बार फिरसे टूटने बिखरने
मैं -मेरी पत्नि
' और ' होने वाले हैं
मेरे बेटे के परिवार के लिये
मुझे अफसोस नहीं मेरे
और हो जाने का
अफसोस है
बाहर वाले कमरे को
कैसे खाली कराऊँ
माँ-बाबूजी से ।।।
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Comment
आदरणीय Shyam Narain Verma जी सादर आभार
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर |
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