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शाकाहार की राजनीति (लघुकथा)

हाथी के नेतृत्व में सभी जानवरों ने शाकाहार संघ बनाया। सबसे पहले लोमड़ी ने शाकाहार की कसम खायी और फिर उसने मांसाहारियों के सामने एक प्रदर्शन करने का सुझाव दिया, जिसे तुरंत ही मान लिया गया। लोमड़ी ने दस-दस जानवरों का समूह बना कर उन्हें एक क्रम में खड़ा किया। सबसे पहले दस हाथी, फिर भालू, बन्दर, बारहसिंघा, हिरण फिर खरगोशों का समूह और सबसे अंत में वो स्वयं थी। बड़े-बड़े पोस्टर लेकर जुलुस ने शाकाहार के पक्ष में नारे लगाते हुए जंगल के राजा शेर की मांद के अंदर तक पूरा चक्कर लगाया जैसे ही लोमड़ी और शेर की नजरे आपस में टकराई तो दोनों के चेहरों पर कुटिल मुस्कान थी।

सारा जुलुस जोश-खरोश से पुनः अपने गंतव्य पर पहुँचा। वहां देखा कि दस खरगोश और दो हिरण कम हैं।

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 22, 2015 at 12:34pm

आदरणीय  हरी प्रकाश जी  दुबे  सर, आदरणीय  कृष्ण मिश्रा जी  सर,  आदर  डॉ. विजय शंकर  जी  सर आप सभी का  हृदय से आभार, इस हौसला  अफजाई  का !!

Comment by Hari Prakash Dubey on April 5, 2015 at 7:29pm

सुन्दर  लघुकथा  आदरणीय चन्द्रेश जी , हार्दिक बधाई !

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 5, 2015 at 4:48pm

सुन्दर कथा पर आपको बधाई!

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 5, 2015 at 3:05am
जंगल पहुँच गयी शरीफों की राजनीति , बधाई , अच्छी लघु कथा , आदरणीय चंद्रेश कुमार जी , सादर।
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 4, 2015 at 7:18pm

भाई जितेन्द्र जी, हार्दिक  आभार  आपका !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 4, 2015 at 9:39am

बहुत सुंदर लघुकथा साझा की आपने, आदरणीय चंद्रेश जी. हार्दिक बधाई

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 4, 2015 at 12:45am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सर, आपको अच्छी लगी यही रचना की सफलता है...हार्दिक आभार आपका !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 3, 2015 at 9:05pm

आदरणीय चन्द्रेश जी सुन्दर और सफल लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई. 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 3, 2015 at 5:56pm

रचना को पसंद करने के लिये हृदय से आभार आ० डॉ. गोपाल नारायण जी सर, आ० लक्ष्मण रामानुज जी सर, आ० श्याम नारायण जी वर्मा सर|

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 3, 2015 at 12:26pm

आ० चंद्रेश जी

बहुत सुन्दर कथा . वाह .

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