चकोर सवैया
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भगण X 7 + गुरु + लघु
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फॊरत है मटकी नित मॊहन, नंद यशॊमति तॆ कहु आज !!
चीर चुरावत गॊपिन कॆ सुनु, वॊहि न आवत एकहु लाज !!
नाँवु धरैं नर नारि सबै नित, नाँवु धरै यदु वंश समाज !!
खीझत खीझत ‘राज’कहैं अलि,खूब सताइ रहा बृजराज !!
"राज बुन्दॆली"
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुन्दर रचना , बधाई और आभार आपका अलग अलग विधाओं से परिचय करवाने के लिए आ. राज बुन्दॆली जी ! सादर
क्या बात है..बेहद उम्दा!
सुन्दर छंद
बहुत सुंदर ....
आ० बुन्देली जी
बहुत नपी तुली सवैया है ------बस तृतीय पंक्ति का आशय भटका रहा है . सुन्दर प्रयास . सादर .
kya baat hai waah waaah waaah waaaaah ,,,,, bahut khoob
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