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आदरणीय राज बुन्देली, बहुत सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई ! सादर
आ० बुन्देली जी
आप अपनी टिप्पणियों पर खामोश रहते है . यह स्वस्थ परंपरा नहीं है.आदरणीय बागी जी ने इस विषय पर एक लेख लिखकर सबको सचेत भी किया है . आपसे अनुरोध है आप भी इस परंपरा का पालन करे . सादर .
आदरणीय राज भाई , सुन्दर छंद रचना के लिये बधाई आपको !
आदरणीय राज बुन्देली सर! आपकी रचनाए पढ़कर मुझे ऐसा स्पष्ट लगता है कि आप! जैसे कविता पाठ करते हुए ही लिखते है!
आपको सुनने की बड़ी लालसा मन में जग गयी है!सुन्दर रचना पर बधाईयां!
आ०बुन्देली जी
आप पहले घनाक्षरी को गा गा कर उसकी रिदम पहचानिये और गा-गाकर ही लिखिए . अभ्यास ही सिखाता हैमित्र 8,88, 7 की यति पर लिखिए और यति में अन्त्यानुप्रास हो तो बहुत अच्छा बनेगा जैसे-
आज यदि होती वह , मेरे पाप धोती वह
ज्ञान बीज बोती वह मात: पयस्विनी I
सादर .
,
भावपूर्ण रचना हुई है | हार्दिक बधाई लय ले बारे में आदरणीया सौरभ जी ने राय दे दी है | सादर
दोनों घनाक्षरियों में शब्दकलों और घनाक्षरी के अनुरूप शब्द की मात्रिकता का ध्यान न रखे जाने से लगभग हर पद (पंक्ति) में लयभंग की स्थिति बन रही है, आदरणीय राज बुन्देलीजी.
दूसरी घनाक्षरी का प्रारम्भ जिस ढंग से हुआ है उसी को तनिक परिवर्तन से सूत्र बनाया जा सकता था - राम राम राम राम, रॊम रॊम राम राम, राम नाम जिसकी ही, साँस और जान है !!
ही जिसकी तथा जिसकी ही का अंतर बहुत ही महीन है लेकिन गेयता में देखिये कितना भारी अंतर पड़ रहा है.
इसका कारण क्या है ? कारण यह है कि जिसकी ही में की को लघुवत उच्चारित किया जा सकता है जो कि ही जिसकी में जिस के साथ ऐसा उच्चारण संभव नहीं है.
बस इसी अनुरूप अन्य पदों (पंक्तियों) में शब्द नियत करते चलें.
घनाक्षरी शब्दों की गणना के अनुसार यों तो वर्णिक छन्द है परन्तु पदों में शब्दों के वर्णक्रम निर्धारित नहीं होते.यानी, शब्दों में यदि मात्रिकता का निर्वहन नहीं किया गया तो छन्द में गेयता को साध पाना संभव नहीं हो पायेगा. इसी कारण इन छन्दों को मुक्तक कहते हैं.
शुभेच्छाएँ
उम्दा छंद रचना के लिए बधाई आपको | |
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