कभी तुम चीन जाओगे कभी जापान जाओगे ।।
नया रुतबा दिखाने को कभी ईरान जाओगे ।।(1)
गिरानी के तले दबकर मरे जनता तुम्हारा क्या,
विदेशों में मियाँ खाने मिलें पकवान जाओगे ।।(2)
पड़े ओले किसानों के मुक़द्दर में बनीं पर्ची,
जताने तुम रहम-खोरी चले खलिहान जाओगे ।।(3)
मिलेंगे कब हमें अच्छे दिनों की आस है भाई,
विदेशी नोट लाने को कभी हनुमान जाओगे ।।(4)
हमारी बेवशी को तुम न समझोगे बड़े साहब,
ज़रा ख़ुद डूब कर देखो,हमें पहचान जाओगे ।।(5)
कहा था 'राज' नें हमसे मगर मानी नहीं हमनें,
इरादा भाँपते हैं हम दिखाकर टाँन जाओगे ।।(6)
"राज बुन्देली"
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय राज बुन्देली जी ..कमाल का कटाक्ष करती शानदार ग़ज़ल पर तो ढेर सारी बधाई लाजमी है स्वीकार करें सादर
व्यंग ग़जब का है ....
विदेशी नोट लाने को कभी हनुमान जाओगे ...कभी को "बन" भी लिख सकते थे अगर १२३४ १२३४ कानून ठीक हो (sorry ग़ज़ल की मुझे समझ नहीं है )...सादर
आदरनीय राज भाई , गज़ल के लिये बधाई आपको ॥
अच्छा व्यंग्य है. ग़ज़ल का फोर्मेट है लेकिन ग़ज़लियत की कमी है.
कुछ एक जगह मंतव्य स्पष्ट है क्यूँ कि विषय सार्वजानिक है लेकिन शेर अपने आप में उस बात को कह नहीं पा रहा है.
कुल मिलकर अच्छा प्रयास है .
बधाई
आ. डॉ श्रीवास्तव साहब इसे "राष्ट्रकवि" :) डॉ. कुमार विश्वास की कालजाई रचना :) -कोई दीवाना कहता है कि तर्ज़ पर पढ़ें. १२२२ X ४ इस पद्धति से क्रम है.
सादर
आ० राज साहेब
गजलका वजन लिख दिया करे तो हम नौसि. खियोंको मदद मिलेगी . आपका काफ़िया आन है तो टान होना चाहिए टाँन नहीं .इस शब्द का अर्थ भी समझ में नहीं आया . कभी हनुमान जाओगे भी अस्पष्ट है . पर आप्का प्रयास बेहतर है . सुन्दर .
आओ भाई राज बुंदेली जी , आपकी पहली ग़ज़ल से गुजरते हुए अत्यधिक आत्मीयता का अनुभव हुआ . हार्दिक धन्यवाद .
लाजवाब व्यंग्य ,बधाई रचना के इस कटाक्ष -भाव पर
इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online