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ज़मानॆ का चलन यारॊ यहाँ इक-दम निराला है !!
गिरा जॊ राह मॆं उसकॊ कहॊ किसनॆं सँभाला है !!(१)

चला जॊ राह ईमाँ की उसी पर है उठी उँगली,
सरीखा आँख मॆं चुभता सभी की तॆज भाला है !!(२)

चलीं हैं आँधियाँ कैसी बुझानॆ अब चिराग़ॊं कॊ,
कभी सॊचा नहीं उन नॆं अँधॆरा स्याह काला है !!(३)

लिखी किसनॆ यहाँ तहरीर है ख़ूनी लिबासॊं की,
जहाँ दॆखॊ वहीं पॆ बस क़ज़ा का बॊल-बाला है !!(४)

वफ़ा की राह चलनॆं का नतीज़ा खून कॆ आँसू,
मग़र फिर भी वफ़ाऒं कॊ ज़हां मॆं खूब पाला है !!(५)

सियासी इल्म यॆ अपनी समझ मॆं ही नहीं आया,
कभी पूजा हमॆं तुमनॆं कभी दिल सॆ निकाला है !!(६)

ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना,
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !! (७)

"राज़ बुन्दॆली
मौलिक एवं अप्रकाशित,,,,,,

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Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 1:12pm

आदरणीय राज भाई , बहुत बढिया गज़ल कही है , सभी अश आर के लिये दिली बधाइयाँ ॥

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 2, 2015 at 5:40am

चलीं हैं आँधियाँ कैसी बुझानॆ अब चिराग़ॊं कॊ,
कभी सॊचा नहीं उन नॆं अँधॆरा स्याह काला है 

बहुत खूब कहा आपने आदरणीय

 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2015 at 11:55pm

आदरणीय राज बुन्देली जी शानदार ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई 

Comment by MAHIMA SHREE on April 1, 2015 at 9:15pm

सियासी इल्म यॆ अपनी समझ मॆं ही नहीं आया,
कभी पूजा हमॆं तुमनॆं कभी दिल सॆ निकाला है !!

ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना, 
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !!...वाह... शानदार... बधाई

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 1:43pm

आ० राज बुन्देली जी

बहुत अच्छी गजल है . आपने जान फूंक दी  है . सादर .

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 1, 2015 at 10:51am
ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना,
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !!
बहुत खूब , बधाई , आदरणीय राज बुंदेली जी , सादर।
Comment by Sushil Sarna on April 1, 2015 at 9:58am

ख़िलाफ़त मॆं खड़ॆ जुगनू कहॆं अब ‘राज’ है अपना,
हमारी क़ैद मॆं बन्दी हुआ इस दम उजाला है !! (७)
वाह वाह वाह .... कितनी भी तारीफ़ करूँ रुकती नहीं जुबां ,कितनी हसीं बना दी आपने एहसासों की बस्तियां … आदरणीय बुंदेली जी इस दिलकश और खूबसूरत शे'रों के गुलदस्ते की प्रस्तुति पर हार्दिक हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं।

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