For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ताटंक छन्द,,,,,,
************

आग लगी है नंदनवन मॆं,पता नहीं रखवालॊं का,
करॆं भरॊसा अब हम कैसॆ,कपटी दॆश दलालॊं का,
भारत माता सिसक रही है,आज बँधी ज़ंज़ीरॊं मॆं,
जानॆं किसनॆ लिखी वॆदना,उसकी हस्त लकीरॊं मॆं,

जिनकॊ चुनकर संसद भॆजा, चादर तानॆ सॊतॆ हैं,
संविधान कॆ अनुच्छॆद सब, फूट-फूट कर रॊतॆ हैं,
आज़ादी कॊ बाँध लिया अब, भ्रष्टाचारी डॊरी मॆं,
इन की कुर्सी रहॆ सलामत, जनता जायॆ हॊरी मॆं,

घाट  घाट पर ज़ाल बिछायॆ, बैठॆ यहाँ मछॆरॆ हैं,
दॆख मछरिया कंचन काया,आज उसॆ सब घॆरॆ हैं,
आज़ादी कॆ बाद बनायॆ,मिल कर झुण्ड सपॆरॊं नॆं,
बजा - बजा कर बीन सुहानी,लूटा दॆश लुटॆरॊं नॆं,

आग उगलतीं आज हवायॆं,झुलस रही फुलवारी है,
भरी अदालत मॆं कौवॊं की,कॊयल खड़ी बिचारी है,
चंदन की बगिया मॆं कैसॆ,अभय-राज है साँपॊं का,
भारत माता सॊच रही है,अंत कहाँ अब पापॊं का,

घूम रहा है गली गली मॆं, डफली लॆकर बंज़ारा,
कौन सुनॆगा उसकी बॊली, फिरता है मारा मारा,
कहाँ क्रान्ति का सूरज डूबा, हॊता नहीं सबॆरा है,
आज़ादी कॆ बाद आज भी, छाया घना अँधॆरा है,

दीवानॊं कॆ रक्त-बिन्दु मॆं,इन्क़लाब का लावा था,
आज़ादी की ख़ातिर मरना,उनका सच्चा दावा था,
राष्ट्र चॆतना राष्ट्र भक्ति मॆं, नातॆ रिश्तॆ भूलॆ थॆ,
हँसतॆ हँसतॆ फ़ाँसी पर वह, सब मतवालॆ झूलॆ थॆ,

भूल गयॆ वह सावन झूलॆ, भूल गयॆ तरुणाई कॊ,
भूल गयॆ थॆ फाग फागुनी, भूल गयॆ अमराई कॊ,
भूल गयॆ वॊ दीप दिवाली, भूल गयॆ हॊली राखी,
भूल गयॆ वह ईद मनाना, भूल गयॆ छठ बैसाखी,

भारत माँ कॊ गर्व हुआ था,पा ऎसॆ मतवालॊं कॊ,
रॊतॆ रॊतॆ कॊस रही अब, गुज़रॆ अरसठ सालॊं कॊ,
धन्य धन्य हैं वह मातायॆं,लाल विलक्षण थॆ जायॆ,
धन्य धन्य वॊ सारी बहनॆं,बन्धु जिन्हॊनॆं यॆ पायॆ,

बड़ॆ गर्व सॆ पिता पुत्र की, करता समर-बिदाई है,
बड़ॆ गर्व सॆ अनुज बन्धु कॊ, दॆता राष्ट्र दुहाई है,
बड़ॆ गर्व सॆ पत्नी आकर,कॆशर तिलक लगाती है,
बड़ॆ गर्व सॆ राष्ट्र भक्ति कॆ,दादी गीत सुनाती है,

भारत का तब वीर लड़ाका,लॆ आशीषॊं की झॊली,
शामिल हॊता जाकर दॆखॊ, जहाँ बाँकुरॊं की टॊली,
सरहद ईद दिवाली उनकी,सरहद ही उनकी हॊली,
तैनात खड़ॆ रक्षक बन कर, सीनॆ पर खातॆ गॊली,

ऎसॆ अमर सपूतॊं की जब, शौर्य सु-गाथा गाता हूँ,
अपनी इन रचनाऒं मॆं मैं,ऒज-सिंधु भर लाता हूँ,
धन्य हुई यॆ शब्द-वाहिनी,धन्य स्वयं कॊ पाता हूँ,
अमर शहीदॊं कॆ चरणॊं मॆं,शत-शत शीश झुकाता हूँ,

"राज बुन्दॆली"
 
पूर्णत: मौलिक व अप्रकाशित,,,,,,,,

Views: 763

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 24, 2015 at 12:05am

इस कविता पर आपको आभिनंदन आदरणीय!

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 12:29am

आदरणीय राज बुन्देली जी,बहुत ही सुन्दर और सधी हुई रचना है , हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

जिनकॊ चुनकर संसद भॆजा, चादर तानॆ सॊतॆ हैं,
संविधान कॆ अनुच्छॆद सब, फूट-फूट कर रॊतॆ हैं,....बहुत खूब 

Comment by somesh kumar on March 22, 2015 at 7:44pm

देश प्रेम और ओज से परिपूर्ण सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 22, 2015 at 1:31am
आदरणीय राज बुन्देली जी आपकी छंद रचना मुग्ध कर देती है। इस प्रस्तुति हेतु बधाई निवेदित है।
Comment by Satyanarayan Singh on March 21, 2015 at 10:43pm

आ. राज बुन्देली जी सादर, देश भक्ति की भावनाओं से ओतप्रोत आपकी इस रचना को मेरा नमन, तन मन  में देश भक्ति  के समृद्ध भाव जगाती पंक्तियों के सृजन हेतु  ढेरों हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 21, 2015 at 9:00pm

आ० राज बुन्देली जी

आज आपने मंत्रमुग्ध कर दिया .इतनी लम्बी राष्ट्रीय भावनाओ से ओत-प्रोत निर्दोष रचना पर मस्तक आपके सम्मान में झुकता है .मैं आपसे ऐसी  ही रचना की  आशा करता था . मेरी पिछली टिप्पणियां शायद आपको अच्छी न  लगी हो पर आज आपने स्वयं को प्रमाणित किया है . बस यही गति बनी रहे . बस निम्न पंक्ति पर फिर विचार कर लीजिएगा -

इन की कुर्सी रहॆ सलामत, जनता जायॆ हॊरी मॆं,

सादर.

Comment by Shyam Mathpal on March 21, 2015 at 7:22pm

Aa.Raj Bundeli,

Desh bhakti paripurn rachna ke liye badhai.

Comment by Tanuja Upreti on March 21, 2015 at 5:56pm
बहुत सुंदर रचना
Comment by maharshi tripathi on March 21, 2015 at 5:42pm

प्रत्येक पंक्ति में आपने जान भरी है ,,शब्द चयन काफी उम्दा |

Comment by maharshi tripathi on March 21, 2015 at 5:40pm

वाह !!शायद ही ऐसी कवितायेँ मैंने इस मंच पर पढ़ी हो ,,,आज आपकी लेखनी के माध्यम से आपकी कविता और देशभक्तों का नमन करता हूँ ,,,इस कविता हेतु आपको ढेरो बधाई ,,उम्मीद है ,,आपकी लेखनी इसी तरह वीरों के लिए लिखती रहेगी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
7 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service