अपनी मांसल देह का, करे प्रदर्शन नार !
कम कपड़ों में घूम रही, देखो बीच बजार !!
आधुनिकता के नाम पर, देखो ये करतूत !
वस्त्र हैं इसने तज दिए, बस चिंदी संग- सूत !!
लिव-इन-रिलेशन में रहे, देखो नारी आज !
कथा के पचड़े कौन पड़े, जब यों-ही मिले परसाद !!
यों-ही मिले परसाद, रिलेशन महिमां गाओ !
इक से मन भर जाए, तो झट दूजा ले आओ !!
स्वतंत्रता की होड़ में,विवेक गया है छूट !
नारी खुद है लुट रही,औ पुरुष रहा है लूट !!
आज नए इस दौर में, टूट रहा है समाज !
नारी है दुश्मन बनी, देखो अपनी आज !!
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- राजू आहूजा
"मौलिक एवम् अप्रकाशित "
Comment
माननीया राजेश कुमारी जी,
मेरी पंक्तियों पर अपनी बिंदास प्रतिक्रिया देने हेतु आपका आभार ! माननीया "परसाद " से मेरा आशय " वह सब कुछ जो वैवाहिक जीवन से जुड़ा है " से है ! शारीरिक-संबंधों से परे भी बहुत कुछ है !
प्रकृति ने मादा को नर के आकर्षण का केंद्र बनाया है ! परिणामतः नर सदा से मादा पर हावी रहा है ! किन्तु कालान्तर में समाज के गठन से बनी सामाजिक व्यवस्थाओं में क्रमवार होते बदलाव नारी के सम्मान के प्रति जागरूक हुए और समाज में नारी की मर्यादा स्थापित हुई ! विकास के इस क्रम में संयुक्त परिवार टूटे और एकल परिवार अस्तीत्व में आया ! आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी सभ्यता की शारीरिक-संबंधों की स्वतन्त्रता के प्रति हमारा युवा आकर्षित हुआ है ! वो लिव-इन-रिलेशन जैसी मान्यताओं में जीकर पारीवारिक बंधनों से मुक्ती का अनुभव करता है !
हर इंसान के अन्दर एक जानवर ( बुराई ) होता है !आदमी कितनी भी तरक्की कर ले , शिष्टता के आवरण ओढ़ ले ,किन्तु भीतर का जानवर सदैव जिन्दा रहता है !और उपयुक्त समय पाकर हमला करता है ! अंग-प्रदर्शन उस जानवर को निमंत्रित करता है ! फलस्वरूप हैवानियत बाल-वृद्ध की सीमाएं लांघ जाती है ,और निर्दोष-मासूम इसके शिकार बनते हैं !
वो हर कृत्य जो हमारी संस्कृति , हमारी मान्यताओं , हमारे संस्कारों के विरुद्ध है , उसका हमें खुलकर विरोध करना पडेगा ! स्वतत्रता की आड़ कल हमें मुह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगी ! ............सादर
ये आधुनिकता के बादल क्या सिर्फ नारियों पर ही मंडरा रहे हैं ?
कथा के पचड़े कौन पड़े, जब यों-ही मिले परसाद !!-----ये क्या है राज कुमार आहूजा जी ?क्या सब चीज में नारी ही दोषी है लिव इन रिलेशन शिप में नारी अकेली रहती है क्या पुरुष नहीं रहता ?पुरुष निर्दोष है? यदि आप इस कविता में दोनों युवा वर्ग को लेते अर्थात लड़की लड़के को दोनों को लेकर व्यंगात्मक लिखते तो हम भी वाह वाह करते किन्तु आप लोगों की आँखों एक तरह का ही चश्मा चढ़ा रहता है की नारी इतनी स्वतंत्र क्यूँ हैं ?छोटे कपड़े क्यूँ पहनती हैं ?मैं पूछती हूँ पुरुषों में संस्कार, सेल्फ कंट्रोल क्यों नहीं क्यों ऐसी बीमार मानसिकता है आप लोगों की आप किस सदी में जी रहे हैं क्या साड़ी पहन कर लडकियाँ बसों की भीड़ में सुरक्षित हैं ?आप कहते हैं ---नारी खुद है लुट रही,औ पुरुष रहा है लूट----क्या वो नन्ही बच्चियाँ दो साल चार साल ,कुछ माह की जिनका रेप हो जाता है ,,सत्तर साल की बूढ़ी स्त्री जिसका रेप हो जाता है क्या वो भी अंग प्रदर्शन करती हैं ? खुद लुटती हैं ?उस विषय में आप क्या कहेंगे ? माफ़ कीजिये व्यंग लिखना है तो निष्पक्ष दोनों पर लिखिए ..इस रचना को व्यगात्मक नहीं कह सकती ...स्त्रियों पर भड़ांस निकालती हुई प्रस्तुति दिखाई दे रही है ये ----पुरुष वर्ग क्या से क्या हो गया आज कल क्या कभी उस पर भी लिखा आपने ,पोनीटेल बनाते हैं बदन में पियर्सिंग कराते हैं ,कपड़ों की तो मत पूछिए कैसे कैसे पहनते हैं -----बारह साल के होते होते नशा करने लगते हैं और क्या क्या नहीं करते किंतनी खूबियाँ गिनवाऊँ ....आदरणीय आपने कभी सोचा की यंग जेनरेशन पर आपकी इन कविताओं का क्या मेसेज जाएगा ?मुझे आपके इस रचना के शब्दों पर भाव पर कड़ा एतराज है ...पढ़ कर बहुत दुःख भी हुआ और क्रोध भी आया |
माननीय पस्टारिया जी ! परिस्थितियाँ व्यंग की परिधी से कहीं दूर आ चुकी हैं ! संयुक्त परिवार पद्धति के स्थान पर एकल परिवार के अस्तीत्व में आने से हमारा सांस्कृतिक ढांचा चरमरा गया है ! स्वतंत्रता की चाह ने नैतिकता को दरकिनार कर दिया लगता है ! हमारी सास्कृतिक-मर्यादाएं दम तोड़ रही है ! विडम्बना यह है की ,सभी कुछ सामान्य है,कहीं कोई तनाव नहीं !....सादर
इसे व्यंग तो नहीं कहा जा सकता है, किन्तु यह आधुनिकता के बादल जब से छाये है इस संस्कृति की धरा पर.. तब से युवा वर्ग स्वतंत्रता से जीने लगा है जिसमे दोनों शामिल है. कहीं कोई तनाव नही. बधाई आदरणीय राजकुमार जी
@JAWAHAR LAL SINGH , माननीय अभिव्यक्ति की आजादी पर अर्ज है...........
कुछ ने तो अपनी सुनाई ,कुछ जमाने को रो गए !
" राजू " जब मेरी बारी आई, सारे के सारे सो गए !!
आदरनीय राजकुमार आहूजा जी, मैं दीपिका के 'माय चॉइस' की बात कहा रहा था ...उसकी प्रतिक्रिया कई तरीके से आयी है आजकल सोसल मीडिया ब्लॉग पर भी... बस अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ...और कुछ नहीं और यहाँ पर माननीया निधि जी ने सवाल उठा ही दिया है ..सादर!
माननीय, जवाहर लाल सिंह जी , आपकी यह बाउंसर ठीक से बल्ले पर नहीं आयी ! कृपया ........... ! .......... सादर ,
धन्यवाद , महर्षि त्रिपाठी जी !
माननीया निधी जी , सादर अभिवादन ! मेरी उपरोक्त रचना अति-आधुनिक,पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित युवा-वर्ग पर एक कटाक्ष मात्र है ! मेरा उद्देश्य, नारी का अपमान कदापि नहीं है ! सच कहें तो नारी हमारे समाज का वह स्तंभ है जिसके बल पर आज भी हमारी संस्कृति टिकी है ! किन्तु आधुनिक युवा,पश्चिमी चश्मे से हमारी सांस्कृतिक- मान्यताओं को देख रहा है ! कदाचित यही उसकी अपच का कारण भी है ! और जहां तक नारी-अंग-प्रदर्शन का प्रश्न है , उसे किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता !......सादर
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