For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपनी मांसल देह का, करे प्रदर्शन नार !

कम कपड़ों में घूम रही, देखो बीच बजार !!

आधुनिकता के नाम पर, देखो ये करतूत !

वस्त्र हैं इसने तज दिए, बस चिंदी संग- सूत !!

लिव-इन-रिलेशन में रहे, देखो नारी आज !

कथा के पचड़े कौन पड़े, जब यों-ही मिले परसाद !!

यों-ही मिले परसाद, रिलेशन महिमां गाओ !

इक से मन भर जाए, तो झट दूजा ले आओ !!

स्वतंत्रता की होड़ में,विवेक गया है छूट !

नारी खुद है लुट रही,औ पुरुष रहा है लूट !!

आज नए इस दौर में, टूट रहा है समाज !

नारी है दुश्मन बनी, देखो अपनी आज !!

.                                 

- राजू आहूजा 

"मौलिक एवम् अप्रकाशित "

Views: 843

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by rajkumarahuja on April 14, 2015 at 3:58pm

माननीया राजेश कुमारी जी, 

मेरी पंक्तियों पर अपनी बिंदास प्रतिक्रिया देने हेतु आपका आभार ! माननीया "परसाद " से मेरा आशय " वह सब कुछ जो वैवाहिक जीवन से जुड़ा है " से है ! शारीरिक-संबंधों से परे भी बहुत कुछ है !

प्रकृति ने मादा को नर के आकर्षण का केंद्र बनाया है ! परिणामतः नर सदा से मादा पर हावी रहा है ! किन्तु कालान्तर में समाज के गठन से बनी सामाजिक व्यवस्थाओं में क्रमवार होते बदलाव नारी के सम्मान  के प्रति जागरूक हुए और समाज में नारी की मर्यादा स्थापित हुई ! विकास के इस क्रम में संयुक्त परिवार टूटे और एकल परिवार अस्तीत्व में आया ! आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी सभ्यता की शारीरिक-संबंधों की स्वतन्त्रता के प्रति हमारा युवा आकर्षित हुआ है ! वो लिव-इन-रिलेशन जैसी मान्यताओं में जीकर पारीवारिक बंधनों से मुक्ती का अनुभव करता है !

हर इंसान के अन्दर एक जानवर  ( बुराई ) होता है !आदमी कितनी भी तरक्की कर ले , शिष्टता के आवरण ओढ़ ले ,किन्तु भीतर का जानवर सदैव जिन्दा रहता है !और उपयुक्त समय पाकर हमला करता है ! अंग-प्रदर्शन उस जानवर को निमंत्रित करता है ! फलस्वरूप हैवानियत बाल-वृद्ध की सीमाएं लांघ जाती है ,और निर्दोष-मासूम इसके शिकार बनते हैं ! 

वो हर कृत्य जो हमारी संस्कृति , हमारी मान्यताओं , हमारे संस्कारों के विरुद्ध है , उसका हमें खुलकर विरोध करना पडेगा ! स्वतत्रता की आड़ कल हमें मुह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगी ! ............सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2015 at 9:54pm

ये आधुनिकता के बादल क्या सिर्फ नारियों पर ही मंडरा रहे हैं ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2015 at 9:51pm

कथा के पचड़े कौन पड़े, जब यों-ही मिले परसाद !!-----ये क्या है राज कुमार आहूजा जी ?क्या सब चीज में नारी ही  दोषी है लिव इन रिलेशन शिप में नारी अकेली रहती है क्या पुरुष नहीं रहता ?पुरुष निर्दोष है? यदि आप इस कविता में  दोनों युवा वर्ग को लेते अर्थात लड़की लड़के को दोनों को लेकर व्यंगात्मक लिखते तो हम भी वाह वाह करते किन्तु आप लोगों की आँखों एक तरह का ही चश्मा चढ़ा रहता है की नारी इतनी स्वतंत्र क्यूँ हैं ?छोटे कपड़े क्यूँ पहनती हैं ?मैं पूछती हूँ पुरुषों में संस्कार, सेल्फ कंट्रोल क्यों नहीं क्यों ऐसी बीमार मानसिकता है आप लोगों की आप किस सदी में जी रहे हैं क्या साड़ी पहन कर लडकियाँ बसों की भीड़ में सुरक्षित हैं ?आप कहते हैं ---नारी खुद है लुट रही,औ पुरुष रहा है लूट----क्या वो नन्ही  बच्चियाँ दो साल चार साल ,कुछ माह की जिनका रेप हो जाता है ,,सत्तर साल की बूढ़ी स्त्री जिसका रेप हो जाता है क्या वो भी अंग प्रदर्शन करती हैं ? खुद लुटती हैं ?उस विषय में आप क्या कहेंगे ? माफ़ कीजिये व्यंग लिखना है तो निष्पक्ष दोनों पर लिखिए ..इस रचना को व्यगात्मक नहीं कह सकती ...स्त्रियों पर भड़ांस निकालती हुई प्रस्तुति दिखाई दे रही है ये ----पुरुष वर्ग क्या से क्या हो गया आज कल  क्या कभी उस पर भी लिखा आपने ,पोनीटेल बनाते हैं बदन में पियर्सिंग कराते हैं ,कपड़ों की तो मत पूछिए कैसे कैसे पहनते हैं -----बारह साल के होते होते नशा करने लगते हैं और क्या क्या नहीं करते किंतनी खूबियाँ गिनवाऊँ ....आदरणीय आपने कभी सोचा की यंग जेनरेशन पर आपकी इन कविताओं का क्या मेसेज जाएगा ?मुझे आपके इस रचना के शब्दों पर भाव पर कड़ा एतराज है ...पढ़ कर बहुत दुःख भी हुआ और क्रोध भी आया |

Comment by rajkumarahuja on April 10, 2015 at 11:08pm

माननीय पस्टारिया जी ! परिस्थितियाँ व्यंग की परिधी से कहीं दूर आ चुकी हैं ! संयुक्त परिवार पद्धति के स्थान पर एकल परिवार के अस्तीत्व में आने से हमारा सांस्कृतिक ढांचा चरमरा गया है ! स्वतंत्रता की चाह ने नैतिकता को दरकिनार कर दिया लगता है ! हमारी सास्कृतिक-मर्यादाएं दम तोड़ रही है ! विडम्बना यह है की ,सभी कुछ सामान्य है,कहीं कोई तनाव नहीं !....सादर   

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 10, 2015 at 8:37pm

इसे व्यंग तो नहीं कहा जा सकता है, किन्तु यह आधुनिकता के बादल जब से छाये है इस संस्कृति की धरा पर.. तब से युवा वर्ग स्वतंत्रता से जीने लगा है जिसमे दोनों शामिल है. कहीं कोई तनाव नही. बधाई आदरणीय राजकुमार जी

Comment by rajkumarahuja on April 9, 2015 at 11:06pm

@JAWAHAR LAL SINGH , माननीय अभिव्यक्ति की आजादी पर अर्ज है........... 

       कुछ ने तो अपनी सुनाई ,कुछ जमाने को रो गए !

     " राजू " जब मेरी बारी आई, सारे के सारे सो गए !! 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2015 at 10:16pm

आदरनीय राजकुमार आहूजा जी, मैं दीपिका के 'माय चॉइस' की बात कहा रहा था ...उसकी प्रतिक्रिया कई तरीके से आयी है आजकल सोसल मीडिया ब्लॉग पर भी... बस अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ...और कुछ नहीं और यहाँ पर माननीया निधि जी ने सवाल उठा ही दिया है ..सादर! 

Comment by rajkumarahuja on April 9, 2015 at 10:00pm

माननीय, जवाहर लाल सिंह जी , आपकी यह बाउंसर ठीक से बल्ले पर नहीं आयी ! कृपया ........... ! ..........  सादर , 

Comment by rajkumarahuja on April 9, 2015 at 9:55pm

धन्यवाद ,  महर्षि  त्रिपाठी  जी !

Comment by rajkumarahuja on April 9, 2015 at 9:47pm

माननीया निधी जी , सादर अभिवादन !  मेरी उपरोक्त रचना अति-आधुनिक,पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित युवा-वर्ग पर एक कटाक्ष मात्र है ! मेरा उद्देश्य, नारी का अपमान कदापि नहीं है ! सच कहें तो नारी हमारे समाज का वह स्तंभ है जिसके बल पर आज भी हमारी संस्कृति टिकी है ! किन्तु आधुनिक युवा,पश्चिमी चश्मे से हमारी सांस्कृतिक- मान्यताओं को देख रहा है ! कदाचित यही उसकी अपच का कारण भी  है !  और जहां तक नारी-अंग-प्रदर्शन का प्रश्न है , उसे किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता !......सादर    

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा posted a blog post

जमा है धुंध का बादल

  चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आयाजरा सोचो कभी झगड़े भला…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
आशीष यादव posted a blog post

जाने तुमको क्या क्या कहता

तेरी बात अगर छिड़ जातीजाने तुमको क्या क्या कहतासूरज चंदा तारे उपवनझील समंदर दरिया कहताकहता तेरे…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post एक बूँद
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Jan 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service