१२२ १२२
भलाई किये जा
बुराई लिये जा
उन्हें बाँट अमृत
जहर खुद पिये जा
तेरे पास जो है
दिये जा दिये जा
उन्हें तू उठा दे
मगर खुद निये जा
जवानी लुटा दे
बुढ़ापा सिये जा
जमाना ख़रा है
भरोसा किये जा
यही जिन्दगी है
जिये जा जिये जा
-------(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आ० गणेश जी ,आपकी तारीफ पाकर ग़ज़ल मुकम्मल हुई ,दिल से बहुत बहुत आभार आपका ....उस शेर के विषय में नीचे लिखा है |
प्रिय निधि जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका |
हाहाहा आ० सौरभ जी,सही समझा फुलकी की बात मुझे भी याद है आप नहीं समझाते तो यहाँ भी वही हाल होता ...यह शब्द मैंने गाँव में सुना है किन्तु इस पर सभी का संशय बना रहेगा इस लिए इस शेर को ही निकाल दूँगी क्यूंकि दूसरा काफिया मिलना असंभव सा लग रहा है ...आपकी नजर में यहाँ कोई और शब्द फिट होता है तो बता दीजियेगा .आपका बहुत- बहुत आभार
छोटी बहर में अच्छी ग़ज़ल हुई है, इसके लिए बहुत बहुत बधाई.
//आप्नी आमार ऐक्टु गोप्प ’निये’ जाउ, आदरणीया, जे एइ खाने प्रोजुक्तो ’निये’ टा खूब भालो शब्दो होबे ना..
:-))//
सौरभ भईया से सहमत हूँ .....दो बातें हो सकती हैं......(एक फिल्मी गाने से)
ज़बरदस्त ग़ज़ल .. सुन्दर शब्दावली और सुन्दर भाव
हा हा हा..
मुझे अच्छी तरह से भान है, आदरणीया राजेश कुमारी जी, कि आप किसी कहे का अर्थ यदि खूब स्पष्ट न हो तो उसके कैसे-कैसे इन्नोवेटिव अर्थ निकाल लिया करती हैं .. :-))
इस टिप्पणी के माध्यम से मैं सभी के साथ साझा कर रहा हूँ, कि, फुलकी (गोलगप्पे) के ऊपर लिखे मेरे सवैया छन्द को आप बहुत दिनों तक किसी नवयुवती पर लिखी रचना समझती रही थीं.. ... हा हा हा..
अब मेरी टिप्पणी पर -
आदरणीय गिरिराज भाईजी के प्रश्न में मेरे कहे का भी आशय निहित है. उसके प्रत्युत्तर में आपने जो कुछ कहा है उसे मैं देख रहा हूँ. वस्तुतः झुकने को आंचलिक भाषाओं में नँवना या नमना कहते हैं. नियना जिससे निये आपने निकाला है, वह उचित प्रतीत नहीं होता. अगर ऐसा है भी तो ऐसा कोई शब्द इतना अधिक क्षेत्रीय होगा या है, कि उसका प्रयोग अत्यंत विशिष्ट अवसरों या कारणों पर ही किया जा सकता है. ऐसे कई उदाहरण साहित्य में हैं भी. लेकिन सामान्यतया किसी अति विशिष्ट आंचलिक शब्द के सामान्य प्रयोग से बचना चाहिये.
सादर
आ० गिरिराज जी ,ग़ज़ल को आपका आशीष मिला ग़ज़ल मुकम्मल हुई ,निय शब्द हमारे यहाँ झुकने के अर्थ में बहुत प्रचलित है जैसे कितना झुकेगा तो उसे कितना नियेगा कहते हैं बहुत बार गाँव में सुना है लिखते हुए वही याद आ गया |बहुत बहुत आभार आपका
मिथिलेश भैया ,आपको ये ग़ज़ल पसंद आई दिल से आभारी हूँ लिखना सार्थक हुआ |
आदरणीया राजेश जी , छोटी बह्र मे खूब सूरत ग़ज़ल हुई है , तहे दिल से मुबारकबाद कुबूल करें ॥
निये जा -- को समझ नहीं पाया , शायद क्षेत्रिय भाषा का कोई शब्द है , शब्दकोष मे भी नहीं मिला ?
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