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आँसुओं से भीगता है रोज अपना बिस्तरा
आपको भी दूर जाकर क्या पता है क्या मिला
एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले
पूछते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका
खार बनकर चुभ रहे हैं फूल यादों के हमें
आपको भी मिल रही है क्या मुहब्बत की सजा
माँगने पर आजकल तो मौत भी मिलती नहीं
फिर मुहब्बत क्या मिलेगी लाजिमी है भूलना
शर्त पर करना मुहब्बत आपकी फितरत रही
खेलना मासूम दिल से और दिल को तोड़ना
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिये सादर आभार
आदरणीय कटारा साहब, गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल पर बढ़िया काम हुआ है, सभी अशआर पसंद आए, बधाई प्रेषित है, सादर.
आपकी प्रतिक्रिया से लिखने का मनोबल मिलता है आदरणीय Nidhi Agrawal जी शुक्रिया
आदरणीय उमेश जी .. बहुत सुन्दर गजल हुई ..
एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले
पूछते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका - मस्त कहा है
माँगने पर आजकल तो मौत भी मिलती नहीं
फिर मुहब्बत क्या मिलेगी लाजिमी है भूलना - एकदम सच और सटीक
वाह वाह और वाह
आपकी प्रतिक्रिया से लिखने का मनोबल मिलता हैKewal Prasad आदरणीय जी शुक्रिया
आ0 कटारा भाईजी, अच्छी गजल हुई है. टन्कण में त्रुटि हुइ है, //एक अरसा हो गया है आपसे हमको मिले
पूठते हैं लोग फिर भी हाल हमसे आपका// ....मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं .
आदरणीय Shyam Narain Verma जी शुक्रिया
आदरणीय Samar kabeerजी शुक्रिया
आपकी प्रतिक्रिया से लिखने का मनोबल मिलता है आदरणीय shree suneel जी शुक्रिया
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