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“ कुछ कीजिये..सर!! आप ने तो भाषण दे दिया कि प्राकृतिक आपदा के कारण, गुणबत्ता रहित अनाज भी समर्थन मूल्य पर खरीद लेंगे. इससे हम लोगों को नुक्सान हो जायगा.  चुनावी फंड, रिफंड करने का अच्छा अवसर है..”

“ अरे!! आप लोग व्यापारी हो, इतना भी नही समझते. किसानो को पैसों  की बहुत जरुरत है. अभी भाषण ही दिया है , लिखित आदेश की गति बहुत धीमी होती है.."

   जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2015 at 9:15pm

आदरणीया मंजू जी. आपका ओ.बी.ओ. मंच पर स्वागत है. रचना पर उपस्थिति हेतु आपका आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2015 at 9:14pm

लघुकथा पर आपकी स्नेहिल सराहना पाकर,बहुत मनोबल मिलता है आदरणीय डा.गोपाल जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2015 at 9:13pm

आदरणीया सविता जी.आपका बहुत-बहुत आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2015 at 9:12pm

आपका आशीर्वाद पाकर ,रचना धन्य हुई आदरणीय डा.विजय जी. आपका ह्रदय से आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2015 at 9:11pm

लघुकथा पर आपकी उपस्थिति व् सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ, आदरणीय बागी जी

सादर!

Comment by manju sharma on April 18, 2015 at 6:34pm

aaj ke yatharth ko paribhashit karti huyi sundar laghuktha ,.. badhai


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 18, 2015 at 6:12pm

कथनी, करनी और मक्कारी के मेल से तैयार हुई लघुकथा अच्छी लगी बधाई आदरणीय जीतेन्द्र जी. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 18, 2015 at 4:02pm

वाह जीतू भाई

मजा अ गया . क्या सुन्दर कटाक्ष किया है .

Comment by savitamishra on April 18, 2015 at 10:30am

बढ़िया कटाक्ष

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 18, 2015 at 10:29am
किसानों की जरूरतें , अपनी अपनी जरूरतें , अपने तरीके , बहुत कुछ है इस छोटी सी लघु- कथा में ,बहुत बहुत बधाई, प्रिय जीतेन्द्र जी, सादर।

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