“ बेटा!! आ गया तू.. कहाँ-कहाँ हो आया भारत भ्रमण में..?
“ माँ!! चारो दिशाओं में गया था. देखो! गंगाजी का जल भी लाया हूँ. आप कहो तो, पिताजी लाये थे वो कलश आधा खाली है उसमे ही डाल दूँ..”
“ नहीं!! बेटा.. रोज समाचारों में सुनती हूँ कि गंगा में स्वच्छता अभियान चल रहा है, वर्षों पहले तेरे पिता जो लाये वो तू बचा के रखना. कम से कम आगे आने वाली पीढ़ी, पवित्र गंगाजल तो देख लेगी..”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आपकी प्रोसाहित करती सराहना हेतु आपका आत्मीय आभार,आदरणीय शिज्जू जी
सादर!
आपका बहुत-बहुत आभार,आदरणीय अमन जी
सादर!
सामयिक विषय पर अच्छी लघुकथा प्रस्तुत की है आपने आदरणीय जितेन्द्र भाई बहुत बहुत बधाई आपको
गंगा में स्वच्छता अभियान चल रहा है, के बाद पुराना जल अधिक शुद्ध क्यू माना माता जी ने ......?संसमयिक मुद्धों पीआर लिखना सदेव अच्छा होता है !
लघुकथा पर आपकी उपस्थिति व् सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ, आदरणीय केवल जी.
सादर!
आ0 जितेंद्र भाईजी, आत्मा को छू लेने मे रचना सफल हुई है. हार्दिक बधाई. सादर,
आदरणीय निलेश जी, आपका ह्रदय से आभार
सादर!
आदरणीया राजेश दीदी. लघुकथा पर आपकी प्रोत्साहित करती सराहना सदा संबल प्रदान करती है, आपका आत्मीय आभारी हूँ
सादर!
निशब्द हूँ
वाह वाह फिर से एक बेहतरीन लघु कथा जिसमे एक जागृत करता सन्देश छुपा है ...बहुत बहुत बधाई जितेन्द्र भैया इस शानदार लघु कथा पर |
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