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ग़ज़ल: नूर: गोया सस्ती शराब हो बैठे.

२१२२/१२१२/२२ (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)

तुम तो सचमुच सराब हो बैठे.
यानी आँखों का ख़्वाब हो बैठे
.
साथ सच का दिया गुनाह किया   
ख्वाहमखाह हम ख़राब हो बैठे.   
.
फ़िक्र को चाटने लगी दीमक
हम पुरानी क़िताब हो बैठे.
.
उनकी नज़रों में थे गुहर की तरह  
गिर गए!!! हम भी आब हो बैठे.
.
अब हवाओं का कोई खौफ़ नहीं
कुछ चिराग़ आफ़्ताब हो बैठे.
.
ऐरे ग़ैरों के मुँह लगे तो लगा     
गोया सस्ती शराब हो बैठे.
.
तब फ़रिश्तों की घट गयी कीमत
जब से वो दस्तियाब हो बैठे.
.
निलेश 'नूर'

मौलिक / अप्रकाशित  

Views: 729

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 9:38pm

शुक्रिया आ. जान गोरखपुरी जी 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 20, 2015 at 9:34pm

साथ सच का दिया गुनाह किया   
ख्वाहमखाह हम ख़राब हो बैठे.   वाह!
.
फ़िक्र को चाटने लगी दीमक
हम पुरानी क़िताब हो बैठे.        वाह! वाह! उम्दा शेर!
.
उनकी नज़रों में थे गुहर की तरह  
गिर गए!!! हम भी आब हो बैठे.          इस शेर पे दिल बाग़ बाग़ हो गया!

बहुत ही सुन्दर गजल पर ढेरों दाद प्रेषित हैं आदरणीय!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 3:46pm

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 3:46pm

शुक्रिया आ. जितेन्द्र जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 20, 2015 at 3:02pm

बढ़िया गज़ल हुई है ।

हार्दिक्म  बधाई  ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2015 at 12:06pm

वाह! आदरणीय निलेश जी. क्या कमाल के अशआर कहें है आपने. दिल से बधाई

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 11:41am

शुक्रिया आ. समर कबीर सा. 
आप ने कॉपी जाँच ली और मुझे क्लियर कर दिया ..इससे बड़ी राहत मिली.
आप सबके उत्साहवर्धन से बेहतर रचनाकर्म की प्रेरणा मिलती है.
सादर  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 11:39am

शुक्रिया आ. मोहन  सेठी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 11:38am

शुक्रिया आ. वीनस जी... 
आप से दाद पाना अपने आप में एक अनुभव है 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2015 at 11:18am

शुक्रिया आ. श्री सुनील जी 

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