वर्षा,
हर्ष-विषाद से मुक्त
चंचल, चपल, वाकपटुता में
मेढकों की टर्र-टर्र
रात के सन्नाटो में भी
झींगुरों के स्वर
सर-सराती हवाओं के संग लहराती
चिकन की श्वेत साड़ी
लज्जा वश देह से लिपट कर सिकुड् जाती
वनों की मस्त तूलिकाएं स्पर्श कर
रॅगना चाहतीं धरा
हरियाली, सावन, कजरी का मन भी
उमड़ता, प्यार-उत्साह...जोश
म्यॉन से तलवारें खिंच जाती.....द्वेष में
चमक कर गर्जना करती
बादलों की ओट से
आल्हा, राग छेड़ कर ताल ठोंकते
दंगल, चौपालों की गलियो में........उजास भरते
मन का आँगन, त्योंहारों का उद्गम स्थल
नागपंचमी पर गुडि़यों की....
शिराओं के रक्त.... उबलते
झलकते किसानों के माथे पर
बिखरते हीरे-मोती
तरलता वश, सरलता से
ममतामयी आँचल को सराबोर करते
खुशियां छप्पर फाड़ कर बरसतीं
घर-द्वार, खेत-खलिहानों में
किसानों का भाग्य जागता......खेलते
भाग्यविधाता के साथ
छप-छप, छपा-छप, छिप-छिप कर
गॉव-गली, चौबारों में
कीचड़ में सन जाती पूरी देह
मन-आत्मा भी..!
वर्षा,
हर्ष-विषाद से मुक्त।
के0.पी.सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 शिज्जू भाईजी, आपका हार्दिक आभार, सादर
बहुत सुंदर रचना है आदरणीय केवल भाई आपको बहुत बहुत बधाई
आ0 अमन भाई जी, आपके स्नेह व प्यार के लिये आपका हार्दिक आभार, सादर
वर्षा का किसान के लिए बहुत महत्व है ,,,, सुखद है ,
परंतु हर बार नही ,,,,
आपकी कविता मन को खुश करती है ! आभार
आ0 गोपाल सरजी, आपके स्नेहिल प्यार एवम उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार. सादर,
आ0 मिथलेश भाई जी, आपके उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार. सादर,
आ0. भंडारी भाईजी, प्रणाम! आपके उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार. सादर,
आ0. जान भाईजी, आपके उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार. सादर,
आ0. मोहन जी, आपके उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार. सादर,
प्रिय सत्यम जी
आपने बहुत प्रयास से लिखा . वर्षा के दृश्य उभर कर आये हैं , सादर.
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