बिना लाग लपेट के
बिना पाखण्ड के
सुन लेता है
समझ लेता है
ईश्वर मन की बात
जान लेता है आत्मा के भाव
फिर भी जाने क्यों
मन्दिर का घंटा जोर जोर से
तीन बार बजाने पर हr
प्रार्थना पूर्ण होने का
पूर्ण सा अहसास होता है
आत्म-मन -चित्त को
बडा ही भ्रमित है
मेरा अल्पज्ञान
ये सोच सोचकर
भारहीन मौन प्रार्थना को
ईश्वर तक पहुँचाने के लिये
मन्दिर के घंटे की आबाज
का भारी भरकम
भार क्यों लपेटा जाता है ?
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Comment
आदरणीय शिज्जु "शकूर"' जी आभार
आदरणीय 'krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी आभार
उमेश सर जी सुन्दर रचना पर बधाई,आपकी कविता के रोचक विषय नयापन ला रहे है!साधुवाद!
मेरे हिसाब से ''मंदिर में घंटे का वही महत्व है जो कि योगसाधना में 'ॐ' का है'' !
अपने मनोभावों को आपने खूब शब्दों में ढाला है बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी आभार
आदरणीय निलेश जी आपका मनोरंजक प्रतिक्रिया के लिये आभार
देखिये!! भगवान जी कई बार निजी कार्यों में व्यस्त होते हैं. किसी के भी घर बिना खटखटाए नहीं घुसना चाहिए. घंटा मंदिर की डोरबेल है कि भगवान जी किचन, बेडरूम आदि से ड्राइंग रूम में आ कर बैठ सकें.
बाक़ी घंटे का एक काम और है कि आरती के दौरान वाद्ययंत्र की तरह संगीतमय ताल दे सके और आरती सुरुचिपूर्ण हो सके.
(नोट: उपरोक्त बातें सिर्फ कपोलकल्पित "मन की बात" हैं अत: इन्हें भी अन्य मन की बातों की तरह गंभीरता से न लिया जाए)
आदरणीय umesh katara जी सुंदर रचना ...घंटे की आवाज़ ईश्वर के लिये नहीं होती बल्कि प्रार्थना करने वाले के लिये होती है ताकि जो गूंज और vibrations हैं वो सचेत को कुछ पलों के लिये सब कुछ भुला देते हैं ....मैडिटेशन के भाव में ले आते हैं ..जैसे ॐ की गूंज .... शायद ...ऐसा मुझे लगता है .....सादर
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी आभार
आदरणीय Dr. Vijai Shankerजी आभार
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