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आरव ने खेल खेल में मेज पर प्लेट और गिलास से एक मीनार बना दी थी।""
"आरव बेटा यह क्या किया आपने"
आरव की मम्मा ने जिज्ञासावश आरव से पूछा।
"मम्मा मैंने यह अलार्म बनाया है ,अब जैसे ही भूकंप आयेगा हम जल्दी से घर से बाहर निकल जायेगे।कैसा है यह अलार्म मम्मा "
"बेटा जी अलार्म तो बहुत अच्छा है ।पर भगवान ना करें कि इसके बजने की नौबत आये"!

"मौलिक एवंम अप्रकाशित"

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 27, 2015 at 8:27pm

कुछ् बात है प्रस्तुति में . बधाई .

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 27, 2015 at 6:21pm
कुछ नयापन है इस लघु-कथा में , बधाई।
Comment by neha agarwal on April 27, 2015 at 5:24pm
धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 27, 2015 at 3:45pm
"बेटा ये गिलास और प्लेट की मीनार क्यों बना दी?"
"मम्मा ये अर्थक्वैक अलार्म है।"

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 27, 2015 at 3:41pm
समसामयिक विषय पर बढ़िया प्रस्तुति। आपको हार्दिक बधाई आदरणीया नेहा जी।
Comment by neha agarwal on April 27, 2015 at 1:38pm
धन्यवाद आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 27, 2015 at 12:31pm

बढ़िया रचना,आदरणीया नेहा जी. वैसे भगवान् का तो नाम ही रह गया है इंसान ने सब कुछ तो छीन लिया है. पर न जाने क्यूँ आपदा-विपदा पर उपरवाले का नाम ही लिया जाता है.

Comment by neha agarwal on April 27, 2015 at 12:12pm
धन्यवाद

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