तन्हाईयों में लौट जाएगी......
किसको सदायें देते हो
कोई रूह को चुराये जाता है
यादों के खंज़र से
आज खामोशी का दामन
तार- तार हुआ जाता है
हवाओं में
साँसों की सरगोशियों का शोर है
आँखों की मुंडेरों पर
दर्द के मौसम आ बैठे है
धड़कनें ज़ंजीरों में कैद हैं
भला दिल की सदा
कौन सुन पायेगा
ये पत्थरों का शहर है
यहां दिल शीशे सा टूट जायेगा
हर मौसम का यहां
अलग मजाज़ है
हर मौसम अब यहां
चश्मे सावन में डूब जाएगा
कोई बादे सबा अब
कोई सदा न लाएगी
तन्हाईयों से जो आयी है
तन्हाईयों में लौट जाएगी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव lजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
बढिया रचना है सरना जी . सादर .
आदरणीय aman kumar lजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" lजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर lजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Dr. Vijai Shanker lजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय shree suneelजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Shyam Narain Verma जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
एक सुन्दर और भावपूर्ण कविता !@
आभार
वाह वाह, कविता की खूबसूरती और शब्द विन्यास देखते ही बनता है, सुन्दर अभिव्यक्ति, बहुत बहुत बधाई.
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