एक जोर बड़ी आवाज हुयी
जैसे विमान बादल गरजा
आया चक्कर मष्तिष्क उलझन
घुमरी-चक्कर जैसे वचपन
----------------------------------
अब प्राण घिरे लगता संकट
पग भाग चले इत उत झटपट
कुछ ईंट गिरी गिरते पत्थर
कुछ भवन धूल उड़ता चंदन
-------------------------------
माटी से माटी मिलने को
आतुर सबको झकझोर दिया
कुछ गले मिले कुछ रोते जो
साँसे-दिल जैसे दफन किया
------------------------------
चीखें क्रंदन बस यहां वहां
फटती छाती बस रक्त बहा
कहीं शिशु नहीं माँ लोट रही
कहीं माँ का आँचल -आस गयी
-------------------------------
कोई फोड़े चूड़ी पति नहीं
पति विलख रहा है 'जान' नहीं
भाई -भगिनी कुछ बिछड़ गए
रिश्ते -नाते सब बिखर गए
------------------------------
सहमा मन अंतर काँप गया
अनहोनी बस मन भांप गया
भूकम्प है धरती काँप गयी
कुछ 'पाप' बढ़ा ये आंच लगी
-----------------------------
सुख भौतिक कुदरत लील गयी
धन-निर्धन सारी टीस गयी
साँसे अटकी मन में विचलन
क्या तेरा मेरा , बस पल दो क्षण
--------------------------------
अब एक दूजे में खोये सब
मरहम घावों पे लगाते हैं
ये जीवन क्षण भंगुर है सच
बस 'ईश' खीझ चिल्लाते हैं
---------------------------
उधर हिमाचल से हिम कुछ
आंसू जैसे ले वेग बढ़ा
कुछ 'वीर' शहादत ज्यों आतुर
छाती में अपनी भींच लिया
------------------------------
क्या अच्छा बुरा ये होता क्यूँ
है अजब पहेली दुनिया विभ्रम
जो बूझे रस ले -ले समाधि
खो सूक्ष्म जगत -परमात्म मिलन
-----------------------------------
कुदरत के आंसू बरस पड़े
तृषित हृदय सहलाने को
पर जख्म नमक ज्यों छिड़क उठे
बस त्राहि-त्राहि कर जाने को
-------------------------------
ऐसा मंजर बस धूल-पंक
धड़कन दिल-सिर पर चढ़ी चले
बौराया मन है पंगु तंत्र
हे शिव शक्ति बस नाम जपें
-------------------------------
इस घोर आपदा सब उलटा
विपदा पर विपदा बढ़ी चले
उखड़ी साँसे जल-जला चला
हिम जाने क्यों है हृदय धधकता
---------------------------------
आओ जोड़ें सब हाथ प्रभू
तत्तपर हों हर दुःख हरने को
मानवता की खातिर 'मानव'
जुट जा इतिहास को रचने को
----------------------------------
हे पशुपति नाथ हे पंचमुखी
क्यों कहर चले बरपाने को
हे दया-सिंधु सब शरण तेरी
क्यों उग्र है क्रूर कहाने को
----------------------------
"मौलिक व अप्रकाशित"
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२.३०-३.०२ मध्याह्न
कुल्लू हिमाचल
Comment
आदरणीय मनोज जी इस पीड़ा को आप ने समझा और कुदरत को नमन किये अच्छा लगा
आभार
भ्रमर ५
आदरणीय मोहन जी रचना इस त्रासदी की व्यथा कथा कह सकी और आप ने सराहा अच्छा लगा
आभार
भ्रमर ५
आदरणीय मिथलेश जी इस त्रासदी में प्रभु सब को हिम्मत दें आप से सराहना मिली ख़ुशी हुयी
हम प्रभु से प्रार्थना और दिल के जज्बात को ही तो व्यक्त कर पा रहे
आभार
भ्रमर ५
आदरणीय बागी जी इस घोर आपदा को व्यक्त करती रचना को आपने मान दिया आप का हृदय पीड़ा को महसूस कर सका लिखना सार्थक रहा
आप से प्रोत्साहन मिला मन खुश हुआ हम प्रभु से प्रार्थना और दिल के जज्बात को ही तो व्यक्त कर पा रहे
आभार
भ्रमर ५
आदरणीय SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR जी मार्मिक एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ..सादर
प्रकृति के कहर और उससे उपजी त्रासदी को आपने भावपूर्ण शब्द दिए है.
आदरणीय सुरेन्द्र कुमार शुक्ल जी, सार्थक भावाभिव्यक्ति.
सादर
आदरणीय सुरेन्द्र कुमार शुक्ल जी, प्राकृतिक आपदा के फलस्वरूप कवि हृदय से निकलती चीत्कार सफल रूप से अभिव्यक्त हुई है, कुछ कहते नहीं बन रहा, इस सार्थक अभिव्यक्ति की मैं सराहना करता हूँ.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online