For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"प्रायश्चित" (कहानी )

      उन दिनों जमशेद पुर में फैक्ट्री में फोर्जिंग प्लांट पर मेरी ड्यूटी थी  फोर्जिंग  प्लांट अत्यंत व्यस्त हो चुके थे। मार्च के महीने में टार्गेट पूरा करने प्रेशर जोरो पर था । बिजली के हलके फुल्के फाल्ट को नजर अंदाज इसलिए कर दिया जाता था क्यों कि सिट डाउन लेने का मतलब था उत्पादन कार्य को बाधित करना जिसे बास कभी भी बर्दास्त नहीं कर सकते थे । फिर कौन जाए बिल्ली के गले में घण्टी बाँधने । जैसा चल रहा है चलने दो बाद में देखा जायेगा । सेक्शन में लाइटिंग की सप्लाई की केबल्स को बन्दरों ने उछल कूद करके अस्त व्यस्त कर रखा था । कई जगह से केबल्स के इंसुलेशन भी उधड़ चुके थे । ये केबल्स सेक्शन के एक पिलर से होकर जाती थीं । वहीँ एक एंगल के किनारे गिलहरियों ने अपना घोसला बना रखा था । सेक्शन में एक ओवर हेड क्रेन भी चलती थी  । क्रेन चलाने के लिए तीन फेज सप्लाई की जरुरत होती थी यह सप्लाई नंगे ओवर हेड तारों से ली जाती थी तारों पर कोई इन्शूलेशन नहीं होता  क्यों कि इन्ही तारों पर क्रेन की सप्लाई के टर्मिनल में लगे रोलर  घूम कर चलते थे । इन्ही तारों की वजह से कई बार बन्दरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। एक बार तो एक बन्दर के बच्चे ने गलती से तार को छू लिया और चिपक गया था फिर उसकी माँ  उसे बचाने की कोशिस में चिपक गयी और बाकी दो और भी चिपक गये थे जो शायद उनकी सहायता में पहुचे थे । इस तरह चार बन्दरों की मौत एक साथ होना एक दुःखद हादसा था  । उनके चिपकने से एक फेज का फ्यूज उड़ गया था । अतः लाइन काट कर उन्हें उतारा गया था उसके बाद फिर सप्लाई चालू कर दी गयी थी । इन मशीनों के बीच में रहते रहते हम भी कितने मशीन बन चुके थे इस बात का आकलन तब हुआ था जब बॉस के चेहरे पर बन्दरों की मौत के बजाय सप्लाई चालू होने की ख़ुशी देखी थी । सप्लाई चालू होते ही वे मुस्कुराते हुए ऑफिस में चले गए थे । संवेदनाये इतनी निष्ठुर भी हो सकती हैं ये बात सोचते सोचते मैं भी मशीनों के बीच काम में गुम हो गया था ।

      उस दिन कुछ महीनो बाद मेंटिनेंस के लिए मेरी सन्डे ड्यूटी लगाई गयी थी । सन्डे के दिन उत्पादन कार्य नहीं होता था सिर्फ प्लांट का मेंटिनेंस का कार्य होता था उस दिन बिजली की सप्लाई कांटेक्ट मोटरें और पैनल के अन्य पुर्जो की जाँच और मरम्मत का कार्य होता। दिए गए कार्य पूरे हो चुके थे । शाम 4 बजे तक कार्य पूरा हो चुका था । ऑफिस में इसी बीच मैकेनिकल ग्रुप के इंचार्ज कौसर अजीज भाई फुरसत के क्षणों में गप शप करने के वास्ते कमरे में दाखिल हो गए ।
  " अरे भाई तिरपाठी ! का हाल चाल  है यार " ।

" आओ कौसर भाई चाय आ रही है । अभी काम से फुरसत मिली है । और अपना सुनाओ ? "
मैंने कौसर भाई को बैठने का इशारा किया। 
कौसर भाई बैठ तो गए लेकिन सामान्य से हट कर कुछ शांत थे और विचार मन्थन करते नजर आये । 
  " क्या हुआ भाई जान आज इतना शांत क्यों "।

" अरे यार चिंता हो गयी है "। 
"किस बात की चिंता कौसर भाई? मैंने उत्सुकता बस उनसे पूछ लिया ।

   अरे ऊ पिलर पर गिलहरी जो घोसला लगाये है । उसके दो बच्चे हैं और कल ऊ बच्चवन की माँ बिजली वाले तारो में फंस गयी थी । "
" फिर क्या हुआ ?" मैंने पूछा ।
" फिर का भड्ड से हुआ । जइसे दग गयी हो । नीचे गिरी तो देखा जल के मर गयी ...... लेकिन ज्यादा बुरा ई हुआ उके लेदा  जइसन बच्चवन का का होगा ? वहीँ चिचियां रहे हैं कल से । मर तो जाएंगे ही ............
तिरपाठी यार कुछ सोचो उनके लिए .....।
    कौसर अजीज इतना कहते कहते कुछ गम्भीर हो गए ।
" ई के इंचार्ज तुम ही हो कितना पाप करोगे यार ? रोज बेचारे निर्दोष पशु पक्षी इसमें मरते हैं ......... तुम लोग गीदड़ होइ गए हौ ... बॉस के सामने मुँह से आवाज ही गायब हो जाती है । ये पाप झेलोगे भी तुमही लोग ।"

    कौसर भाई की बातों में दम था । वे मुस्लिम परिवार में पले बढे थे । बे मिशाल करुणा भाव के स्वामी थे । वह बहुत अच्छे गायक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त व्यक्ति थे। कलाकार मन वाकई बहुत सरल होता है। उनकी यह धिक्कार मेरे अंतर्मन को झकझोर गयी थी और मैं अपने आप को अपराध बोध से नहीं बचा सका था। सहसा मेरे मानस पटल पर वह पुरानी बात किसी सिनेमा रील की तरह घूम गयी थी जब मेरी मोटर सायकल के नीचे एक गिलहरी दब कर मर गयी थी । मुझे उसके बारे में तरह तरह के ख्याल आये थे मैं काफी चिंतित हुआ था। गलती मेरी ही थी मोटर सायकल की स्पीड तेज थी और गिलहरी तेजी के साथ सड़क को पार करते समय पाहिये के नीचे आ गयी थी। जब यह दुर्घटना हुई तो मैं काफी दिनों तक मानसिक संत्रास झेलता रहा था । मुझे लगा था कि गिलहरी जब मरी थी तो वह मुह में दबाये हुए कुछ ले जा रही थी शायद बच्चों के लिए । वो बच्चे उसका इंतजार किये हुए होंगे ....फिर उन बच्चों का क्या हुआ होगा ......। ये सारी बातें आज भी मुझे व्यथित कर जाती थीं । बार बार सोचता था प्रभु मेरा यह पाप कैसे उतरेगा ।

     मन में विचार आने लगे शायद भगवान ने मुझे प्रायश्चित करने का अवसर दिया है । अचानक तन्द्रा टूटी और पत्नी का ख़याल आया । वह आधात्मिक विचारधारा से युक्त है जीवों के लिए दया भाव तो है पर उन्हें पलना पोषना वह पाप की परिधि में लाती हैं। उनका मनना है कि इस से जीवों की स्वच्छंदता प्रभावित होती है और मनुष्य में आसक्ति पनपती है । यह आसक्ति पाप की परिचायक है । वह जीवन भर कुत्ता बिल्ली तोता खरगोश आदि के पालने की विरोधी रही हैं  । मैं जनता था वह किसी भी कीमत पर बर्दास्त नहीं करेंगी और मुझे इन बच्चों को वापस लाना ही पड़ेगा ।

     चाय आ चुकी थी कौसर भाई ध्यान मग्न होकर चाय की चुस्की ले रहे थे तभी उन्होंने फिर कहा -
"अरे भाई तिरपाठी ये देखो कुछ सुना ".........

"मैं कुछ समझ नहीं पाया भाई आपने क्या सुना ?  " मैंने कौसर भाई से पूछा । 
" ई उनही गिलहरी के बच्चवन की आवाज है। कितनी दूर तक ई आवाज पहुच रही है । आओ चलौ हमरे साथ हम दिखाते हैं ।"
    इतना कहते ही वह चल पड़े । वहां पहुँच कर वह पिलर पर चढ़ गए घोसले में से चार बच्चों को निकाला । दो भोजन पानी के आभाव में मर चुके थे दो जीवित बचे थे । 
"ई देखो तिरपाठी ई दोनों भी आज कल मा मरि जइहैं ।
   ऐसा करो इनका तुम घर लइ जाओ रुई से दूध ऊध पिलाइहौ तौ जी जइहैं । "
     बच्चे बेहद कोमल थे परंतु मुरझाये हुए थे । काफी क्षीण अवस्था में थे । अगर उन्हें उसी घोसले में फिर रख देते तो उनकी मृत्यु निश्चित थी । अतः मैंने फैसला कर ही लिया था कि कुछ भी हो इन्हें जिन्दा रखने की  कोशिस जरूर करूँगा । उन्हें टेबल पर रख कर देखा तो थोडा बहुत चल लेते थे । भूखे होने की वजह से बहुत कमजोर हो गए थे । कुछ देर तक हथेली पर रख कर ध्यान से देखता रहा । ड्यूटी ख़तम हो चुकी थी , ईश्वर का नाम लेकर उन्हें घर ले आया ।

     घर लाते ही पत्नी ने पूछा ये डिब्बे में क्या है ? मैंने एक साँस में गिलहरी के बच्चों की कहानी सुना डाली । पत्नी के चेहरे पर एक अजीबो गरीब आकृति उभर आयी । आवेशित होकर बोल पड़ी

"आखिर ये जो महाशय आपको रास्ता दिखाए हैं वो क्यों नहीं ले गए इन्हें अपने घर ? आप ही बेवकूफ मिले थे ये पाप कमवाने के लिए । ये छोटे छोटे बच्चे कैसे जिएंगे, मर जाएंगे । मैं तो इस पाप के किनारे नहीं जाउंगी । आप जानो आप का काम जाने ।"
   उनका यह उपदेश चल ही रहा था तब तक मेरे दोनो बच्चे भी आ गए । गिलहरी के बच्चों को देखकर वे काफी खुश और उत्साहित नजर आए । 
बड़े बेटे ने प्रतिवाद किया -
" तो क्या" क्या हुआ मम्मी ..... वैसे भी मर जाते  कोशिस करने में क्या जाता है । थोड़े बड़े हो जाएंगे तो छोड़ देंगे ।इनकी जान बच जायेगी तो सबको ख़ुशी होगी । "
   छोटा बेटा पुनीत भी समर्थन में उतर आया ।
"मम्मी आप मान भी जाओ बच्चों को मरने नहीं देंगे हम लोग । "
   "ठीक है जैसी मर्जी हो करो हम किनारे नहीं जाएंगे  । हमें नहीं कमाना है कोई पाप ।" पत्नी ने झुंझलाते हुए कहा । 
"आप चिंता मत करो हम सब लोग मिलकर पाल लेंगे ।"
विनीत ने उन्हें सांत्वना दिया ।
  एक कटोरी में विनीत गाय का दूध ले आया । बच्चों के मुह को कई बार दूध तक लाया गया । दूध में मुह भी डुबोया गया लेकिन वे बच्चे दूध पीना ही नहीं जानते थे । फिर कौसर भाई की बात याद आयी  । रुई की बाती दूध से भिगो कर उनके मुह पर रखोगे तो पिएंगे ।  बाती को दूध से भिगो कर जब बच्चों के मुह तक लाया गया तो वे बच्चे माँ का थन समझ बाती को चूसने लगे  । इस तरह उनके दूध पीने का श्री गणेश हो चुका था। उन्हें जब लगातार हर दो घण्टे तक पर दूध दिया गया तब वे दो तीन दिनों के बाद स्वस्थ नजर आने लगे । उनके जीवित रहने की उम्मीद भी जाग गयी । उन्हें स्वस्थ होते देख पत्नी भी काफी खुश दिखने लगीं ।

    एक सप्ताह बाद अब वे बिस्तर पर चलने फिरने लगे थे । बच्चों ने उनके लिए गत्ते के एक डिब्बे में रुई डालकर घोसला बना दिया था । गत्ते में पेन से कई छोटे छोटे छेद कर दिया था जिससे हवा आती जाती रहे । एक बिल्ली का भी कभी कभी घर में आना जाना होता था इस लिए उसको ध्यान में रखकर मजबूती को पहले ही परखा जा चुका था। कोई बिल्ली उसे खोल ना सके इसलिए गत्ते में एक लाक की भी व्यवस्था की गयी थी । उनका बिस्तर पर टहलना चीं चीं चिक चिक करना । फिर एक दूसरे को ढूढ़ना सब कुछ बहुत मनोरंजक हो गया । बच्चों की चंचलता उनका खेलना कूदना देख कर पत्नी मन्त्र मुग्ध हो जातीं थी । अब वह बच्चों की स्पेशल केअर टेकर बन चुकीं थीं । मोहल्ले के बच्चे भी उन्हें देखेने अपने पापा मम्मी को साथ में लेकर आने लगे   । मेरी फैक्ट्री के एक अधिकारी महोदय भी उन्हें देखने गए । बच्चों का दूध पीते वीडियो भी बनाया। 
   एक दिन एक बच्चे का पेट फूल आया काफी सुस्त हो गया । किसी ने कहा सबको मत दिखाया करो । नज़र लग जाती है । बस तब से सावधानी बरती जाने लगी । हाजमा सही करने के लिए दूध को पतला कर दिया गया । दो दिन वह बच्चा स्वस्थ हो गया ।

    लगभग 15 दिन बीत चुके थे । वे बच्चे अब बिस्तर के बजाय फर्श पर टहलने लगे थे । उनके चाल में गति आ गयी थी चिक चिक चीं चीं की आवाज से अब पूरा घर गूँज उठता था । सुगमता से पकड़ में नहीं आते थे । आवाज देकर बुलाने पर वे करीब आ जाते और पैरो पर चढ़ जाते  फिर कन्धों तक पहुच जाते 
फिर उतर कर भाग जाते । वे दूध अभी भी पीते थे । कभी बिस्तर पर आ जाते कभी तकिये के पीछे छिप जाते तो कभी परदे पर चढ़ जाते । बहुत ही मनोरंजक दृश्य उत्पन्न हो जाता था । पूरा परिवार अब टी वी के बजाय इनके खेल से आनंदित होने लगा था   । मेरे सामने चुनौतियाँ  बढ़ गयीं थी । 
अब इन्हें इनके मूल प्राकृतिक वातावरण की ट्रेनिग देनी थी । अब मैं इन्हें दरवाजे की फुलवारी में टहलाने लगा था । गुड़हल के पेड़ पर चढ़ जाना और उतर आना ये सब करतब ये सीख चुके थे । वहां अन्य गिलहरियां भी आती थी । चावल के कुछ दाने मैं जान बूझ कर वहाँ फेक देता था जिस से अन्य गिलहरियां वहां आकर रुके और बच्चों को अपनी कंपनी में शामिल कर लें   । और दूसरा उद्देश्य ये था कि बच्चे शायद देख कर अनाज के दाने खाने प्रारम्भ कर देंगे । गिलहरियां आने लगी थोडा बच्चों के करीब आतीं और फिर वापस चली जाती । इन बच्चों के प्रति उनके मन में कोई विशेष आकर्षण नहीं देखा गया  और ना ही दाना चुनते देख ये बच्चे उनसे प्रेरित ही हुए । यह क्रम भी एक सप्ताह तक चलता रहा ।

     रविवार के दिन मेरी छुट्टी थी । सवेरे बच्चों को बाहर निकाला । उनमे से एक बहुत सुस्त नजर आया । ध्यान से देखा तो उसे दस्त आ रहा था । घोसला बदला गया । दूसरे घोसले की डेटॉल से सफाई की गई । बच्चे की भी सफाई की गयी । मेडिकेटेड रुई घोसले में डाली गयी । बच्चे को मिनिरल वाटर दिया गया । उसने पानी काफी तेजी से पिया ऐसा लगा जैसे उसके शरीर में पानी की काफी कमी हो गयी हो । थोड़ी सुस्ती कम हुई लेकिन समाप्त नहीं हुई । पानी मिला दूध भी दो बार दिया गया । थोड़ी सी चैतन्यता आयी। पता नहीं क्यों  जिस दूध को पीने के लिए वह प्रतिस्पर्धा रखता था आज वही दूध पीना उसे पसंद नहीं आ रहा था । दूसरे दिन सोमवार को वह बिलकुल सुस्त हो गया ।

             दस्त की समस्या अनियंत्रित होती जा रही थी । विकल्प के तौर पर मेरे पास ओ आर एस का घोल था हम उसे दे रहे थे । हर पांच मिनट पर एक दो बूँद घोल उसके मुह में डाल देते । कुछ पीता कुछ उगल देता । इसी बीच दूसरे बच्चे की हालत भी ख़राब हो गयी । वह कापने लगा थोड़ी देर बाद उसे भी वही समस्या तेज दस्त से उसकी भी स्थिति चिंता जनक होने लगी । पहले वाले बच्चे की स्थिति अब ज्यादा ख़राब हो गयी थी । पत्नी उसके लिए महा मृत्युंजय का जप कर रहीं थी । शाम सात बजे तक उसके हाथ पैर ऐठने लगे थे । अब बेहोशी की स्थिति में पहुच चुका था । दूसरा वाला भी काफी कमजोर हो गया था उसे मेट्रोजिल का सीरप भी  दिया गया । कोई सुधार नही हो पा रहा था ।

     घर पर पूरा परिवार दुखी था । क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा था । दूसरे बच्चे के इलाज की भी वही प्रक्रिया चल रही थी। मेरी नाइट शिफ्ट ड्यूटी थी ड्यूटी जाना जरुरी था क्यों कि बाकी लोग छुट्टी पर थे । मैं ड्यूटी चला आया । रात भर उन बच्चों की चिंता मन में छाई रही । ईश्वर से प्रार्थना करता रहा। सवेरे पौने छः बजे छुट्टी होते ही घर पंहुचा तो देखा सब सो रहे थे । पत्नी ने बताया रात तीन बजे तक सब लोग उसके इलाज में लगे रहे एक तो लगभग बेहोश ही रहा दूसरा रात में तेज तेज कापने लगा था । विनीत उसका घोसला फ्रिज पर स्टेप लाइजर के पास रख आया था जिससे थोड़ी गरमी बनी रहे । मैं तुरंत फ्रिज के पास उनके घोसले तक गया । घोसला खोल कर देखा तो वे दोनों चेतना शून्य हो चुके थे । आँखे भर आईं । मैं पुनः अपराध बोध से ग्रसित हो गया । मेरी आत्मा ईश्वर से पूँछ रही थी हे ईश्वर अब इसका प्रायश्चित किस रूप में कराओगे ।

 

 (मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1525

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on May 3, 2015 at 7:42pm
भाई श्वेतांक गुप्ता जी आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on May 3, 2015 at 7:42pm
भाई पास्टारिया जी आभार
Comment by shwetank gupta on May 1, 2015 at 11:06am
बेहद संवेदनशील कहानी
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 1, 2015 at 10:58am

बहुत अच्छी कहानी, आदरणीय नवीन जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service