रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण ओ बी ओ नियमों के आलोक में प्रबंधन स्तर से हटा दी गयी है.
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२०१५०३१९०७
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आदरणीय निर्मल भाई जी कमाल की ग़ज़ल की बह्र भी बता दीजिए हम तो पूछ पूछ हार गए.
आदरणीय नवीन मणी त्रिपाठी जी, मेरी खोजी प्रवृत्ति आपको पसंद आई, उसके लिए हार्दिक आभार, इस खोजी प्रवृत्ति ने आपकी पहली रचना चैनलों की शाख पर अब झूठ का अम्बार है के भी पूर्वप्रकाशित होने की खोज कर ली थी जो तीखी कलम से ब्लॉग और साहित्यिक पत्रिका जय विजय में प्रकाशित हो चुकी है किन्तु मंच पर आपकी पहली रचना थी इसलिए आगाह नहीं किया किन्तु जब दूसरी रचना भी पूर्वप्रकाशित ही पोस्ट की गई तो मंच की गरिमा को देखते हुए निवेदन किया है. बाकी आदरणीय प्रधान संपादक महोदय के निर्णय पर है. वैसे रचना के नीचे मौलिक व अप्रकाशित लिखना भी अनिवार्य है, मंच का पहला नियम है- 1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है ।
\\रहा सवाल मिसरों का मैं उन्हें चेक करूँगा ।\\
अवश्य यदि ग़ज़ल की बह्र फाइलातुन-फाइलातुन-फाइलातुन- फ़ाइलुन है तो करीब, नसीब, हबीब, रकीब, गरीब और अजीब काफियाबंदी हो ही नहीं सकती. इस काफिया के साथ ग़ज़ल के सभी अशआर ख़ारिज हो जायेंगे. सादर, शुभकामनाएं
आदरणीय नवीन जी इस खूबसूरत रचना पर आपको बहुत बहुत बधाई ........ख्याल अच्छे हैं बहर पर ध्यान देने की ज़रुरत है
आदरणीय नवीन मनी त्रिपाठी जी ,इस रचना पर बधाई आपको , बाकी आदरणीय मिथिलेश भाई और श्रद्येय डॉक्टर गोपाल सर की बात का संज्ञान लें ! सादर
आदरणीय नवीन मनी त्रिपाठी जी इस रचना की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. आपने ग़ज़ल की बह्र नहीं लिखी है इसलिए बह्र पकड़ने की कोशिश की है...हर कलम तारीफ लिखती जा रही इस दौर में ... इस मिसरे से ग़ज़ल फाइलातुन-फाइलातुन-फाइलातुन- फ़ाइलुन बह्र लग रही है. इस हिसाब से इस रचना के कई मिसरे बेबह्र हो गए है. बह्र बिना रचना को ग़ज़ल कहने की सार्थकता आप भी समझते है. आदरणीय गिरिराज सर से मैं भी सहमत हूँ. सादर.
एक निवेदन है कि मंच के नियमानुसार अप्रकाशित रचना ही पोस्ट की जानी चाहिए किन्तु आपकी ये रचना सोशल मीडिया/ब्लोग्स में पूर्व में ही प्रकाशित हो चुकी है. सुलभ सन्दर्भ हेतु 11 फरवरी 2012 को प्रकाशित रचना का चित्र -
सुंदर गज़ल और सुंदर भाव ,बधाई नवीन जी |
आदरणीय नवीन भाई , बातें अच्छी हैं ! आपको इसके लिये बधाइयाँ ।
मै आदरणीय गोपाल भाई जी की बात से सहमत हूँ , गज़ल का वज़्न भी देना चाहिये ! अगर आप अपनी रचना को गज़ल कहेंगे तो पाठक बह्र ज़रूर पूछेंगे । // आशा है आप मेरे विचार से सहमत हो जाएंगे // अगर आप रचना की विधा में गज़ल लिखते हैं तो सहमति का कोई सवाल ही नही उठता । क्योंकि बिना बह्र के ग़ज़ल कोई कह नही सकता । आशा है आप मेरी बातों को समझ सकेंगे , और अन्यथा नहीं लेंगे ॥
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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