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एडमिन
२०१५०३१९०७
Comment
आदरणीय नवीनमणिजी, सुझाव सलाहें मिल गयीं हैं. तदनुरूप अभ्यास करें. आपकी पहली प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ. आपकी प्रस्तुतियाँ अपनी ऊर्जा से आगे भी रोमांचित करेंगीं इसका पूरा विश्वास है. यह मंच सीखने के बेहतर अवसर उपलब्ध करायेगा.
एक बात जो अवश्य कही जानी चाहिये थी - हम एक थे, हम एक हैं ,हम एक ही होंगे सदा
यह मिसरा आपके अन्य मिसरों के वज़न से भिन्न है. इसे भी देख लीजियेगा.
शुभ-शुभ
सुन्दर ग़ज़ल हुई.. ये दोनों शेर बहुत उम्दा बने
नुक्कड़ो पर भेड़िये हैं नोचते हर जिस्म को ।
हर मुसाफिर को नकाबों की यहां दरकार है ।।
हम एक थे, हम एक हैं ,हम एक ही होंगे सदा ।
वोट का मजहब ये बातें कर गया इनकार है।।
माँ की ममता बाप का साया कहाँ परदेश में ।
रोटियों के खौफ से टूटा हुआ ऐतबार है ।।
ye sher dekhiye.... yahaa AITBAAR lafz hone ki wajah se misra kharij ho rha hai....
जिसमें जितना दम था वो बोया जहर इस मुल्क में।
कातिलों के हाथ से गिरती कहाँ सरकार है ।।
is sher me ZAHAR ki wajah se misra kharij ho rha hai..
ZAHAR nahi ZAHR hota hai jiska wazan 21 hota hai....jaise.....SHAHR, LAHR,SABR, KABR aadi.
ghazal to bahut umda hui hai janab sirf in misro ko theek kar lijiye. shukriya.
आदरणीय नवीन भाई , गज़ल में बातें खूब सुन्दर कहीं हैं , हार्दिक बधाइयाँ । जहाँ तक काफिये का सवाल है उसे आप निम्न अनुसार चाहें तो सुधार लीजियेगा , पसंद न आये तो कुछ और सोचियेगा ।
चैनलों की शाख को अब झूठ का आधार है ।
सिर्फ तारीफों की चर्चा में बिका अखबार है ।।
ऐस कर ने से बाक़ी शेर ठीक हो जायें गे , बस ये मिसरा -- रोटियों के खौफ से टूटा हुआ ऐतबार है - और सुधारना पड़ेगा --- इसे चाहे तो आप -- रोटियों के चाह में छूटा हुआ घरबार है --- कर सकते हैं ।
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई
आदरणीय बागी सर से सहमत हूँ काफियाबंदी में सुधार की दरकार है. मतले में अम्बार /अखबार के स्थान पर बाज़ार / अखबार किया जा सकता है
चैनलों की शाख पर अब झूठ का बाजार है ।
सिर्फ तारीफों की चर्चा में बिका अखबार है ।।
obo परिवार में स्वागत है आपका!बहुत ही उम्दा शुरुवात की है आपने!आ० बागी सर! की बात पर जरूर गौर करियेगा!
कथन के स्तर पर लाजव़ाब और समसामयिक रचना पर बहुत बहुत बधाई!!
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, एक अच्छी ग़ज़ल काफिया स्तर पर खारिज हो गयी है, केवल एक शेर ....
//माँ की ममता बाप का साया कहाँ परदेश में ।
रोटियों के खौफ से टूटा हुआ ऐतबार है ।।//
को छोड़कर शेष अशआर में गलत काफियाबंदी कर दी गयी है, उक्त कोट किये गए शेर का मिसरा सानी की तकती एक बार देख लें, सादर.
आ० नवीन जी
कल ही आप सदस्य बने और आज ही आपकी सुंदर गजल रचना पढ़कर आनंद आ गया . आपका इस परिवार में स्वागत है .
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी ,सुन्दर ग़ज़ल
चैनलों की शाख पर अब झूठ का अम्बार है ।
सिर्फ तारीफों की चर्चा में बिका अखबार है ।।.....वाह , हार्दिक बधाई आपको ! सादर
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