२२१२ २२१२ २२१२ २२१२ - रजज मुसम्मन सालिम |
कोई दबा घर में कहीं आशा लगाये और का | |
इस जिंदगी का क्या भरोसा ये मुद्दा है गौर का | |
बारिश कहीं आँधी कहीं आकर गिराये घर नगर , |
अपना नहीं ज़िंदा बचा सोचा नहीं इस दौर का | |
कुदरत करे ये खेल कैसा जान लेकर छोड़ता , |
ठोकर कहीं धक्का कहीं आशा नहीं है ठौर का | |
नाजुक कली कैसे बचे माली लगाये मार जब , |
कोई बचे कैसे कहीं कुदरत हिलाये कौर का | |
जब साँस है तब आश है फिर है जहाँ की खुशी , |
ये जिंदगी कैसे रुके जब आश ना हो मौर का | |
देता सहारा कोई जब जीवन बचा भी हो कहीं , |
वर्मा गया कोई जहाँ से फिर कहाँ वो और का | |
श्याम नारायण वर्मा |
(मौलिक व अप्रकाशित) |
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आदरणीय अच्छी गजल कही आपने .
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