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अगर दिल साफ है, आ सामने, कह मुद्दआ क्या है
खुला दर है तो फिर तू खिड़कियों से झाँकता क्या है
यहाँ तू थाम के बैठा है क्यूँ अजदाद के क़िस्से
बढ़ आगे छीन ले हक़ , गिड़गिड़ा के मांगता क्या है
अगर भीगे बदन के शेर पे इर्शाद कहते हो
तो फिर बारिश में मै भी भीग जाऊँ तो बुरा क्या है
जो पुरसिश को छिपाये हाथ आयें हैं उन्हें कह दो
मुझे निश्तर न समझाये , कहे ना उस्तरा क्या है
दुआयें जब ख़ला में हाथ उठ जाने से होतीं हैं
कोई पत्थर से लिपटे और मांगे तो ख़ता क्या है
मुझे अल्फाज़ के मानी न समझाओ , मेरे यारों
ज़रा चहरा भी दिखलाओ, मैं पढ़ तो लूँ, लिखा क्या है
मैं उनसे बात उनकी ही ज़बाँ में बोल आया था
न समझें तो, उसी को फिर कहे से फ़ाइदा क़्या है
किसी के रास्ते को यूँ ग़लत कहने से है अच्छा
चलो तुम साथ में, या फिर कहो सच रास्ता क्या है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल पर विस्तृत प्रतिक्रिया और सराहना के लिये आपका हृदर से आभारी हूँ ।
आदरणीया महिमा जी , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
अगर दिल साफ है, आ सामने, कह मुद्दआ क्या है
खुला दर है तो फिर तू खिड़कियों से झाँकता क्या है.................... शानदार
दुआयें जब ख़ला में हाथ उठ जाने से होतीं हैं
कोई पत्थर से लिपटे और मांगे तो ख़ता क्या है कमाल का शेर
मैं उनसे बात उनकी ही ज़बाँ में बोल आया था
न समझें तो, उसी को फिर कहे से फ़ाइदा क़्या है
मुझे अल्फाज़ के मानी न समझाओ , मेरे यारों
ज़रा चहरा भी दिखलाओ, मैं पढ़ तो लूँ, लिखा क्या है..क्या हुनर है वाह भाईसाब
मैं उनसे बात उनकी ही ज़बाँ में बोल आया था
न समझें तो, उसी को फिर कहे से फ़ाइदा क़्या है..बिलकुल सही बात सच्ची बात
किसी के रास्ते को यूँ ग़लत कहने से है अच्छा
चलो तुम साथ में, या फिर कहो सच रास्ता क्या है.....बिलकुल सहमत हूँ
कमाल की इस रचना पर आपको ढेर सारी बधायी सादर
मुझे अल्फाज़ के मानी न समझाओ , मेरे यारों
ज़रा चहरा भी दिखलाओ, मैं पढ़ तो लूँ, लिखा क्या है
मैं उनसे बात उनकी ही ज़बाँ में बोल आया था
न समझें तो, उसी को फिर कहे से फ़ाइदा क़्या है....शानदार ...बहुत -2 बधाई आपको
आदरणीय ध्रर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ॥
आदरणीय श्री सुनील भाई , आपका बहुत आभार ॥
आदरणीय सौरभ भाई , आपको गज़ल पसंद आयी तो कहना सार्थक हो गया ! सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।
आदरणीय शिज्जु भाई , हौसला फज़ाई का शुक्रिया ॥
आ. गिरिराज जी, इस शानदार ग़ज़ल के लिए बारंबार दाद कुबूल कीजिए।
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