For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले- शिज्जु शकूर

1222/1222/1222/1222

मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले

सो जो अल्फ़ाज़ निकले दिल से बाहर वो भी नम निकले

 

गुजश्ता* वक्त का कोई निशाँ बाकी नहीं लेकिन                                     *गुज़रा हुआ

उसी की जुस्तजू में दिल से खूँ ही दम ब दम निकले

 

किया जिस वास्ते किस्मत से शिकवा मैंने ऐ ग़मख़्वार

हकीकत में वो सारे ज़ख्म तो तेरे सितम निकले

 

किसी खूँख्वार* को मतलब नहीं ईमानो दीं से कुछ                               *रक्त पिपासु

तू आँखें खोल के देखे तो फिर तेरा वहम निकले

 

मैं ख़ूगर* इस कदर तन्हाइयों का हो गया यारो                                   *आदी

बड़ी मुश्किल से बाहर आज मेरे ये कदम निकले

 

वफा तुमने निभाई जो रवायत तोड़कर ऐ दोस्त

तुम्हारे वास्ते हर कायदे को भूल हम निकले

 

-मौलिक व अप्रकाशित

 

Views: 1704

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 4, 2015 at 6:14am

आदरनीय शिज्जू जी  आज फिर आपकी पोस्ट पर हरम का भ्रम दूर करने के लिए आया हूँ  वाकई बहुत सार्थक चर्चा हुई ,आपकी बेमिशाल रचना के साथ साथ इतना सार्थक चितन मिला एक बार फिर से बधाई ..अद्भुत है यह मंच ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2015 at 4:11am

भाईजी, बहुत बढिया.. .

किसी खूँख्वार* को मतलब नहीं ईमानो दीं से कुछ  

तू आँखें खोल के देखे तो फिर तेरा वहम निकले

वाह वाह !

इस प्रस्तुति पर हुई चर्चा केलिए सभी पाठकों का धन्यवाद कहना चाहूँगा. 

शिज्जू भाई. आपके साथ-साथ आदरणीय समर सहब, आदरणीय नीलेशजी, आदरणीय गिरिराज भाई को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ.

शुभेच्छाएँ व बधाइयाँ.

.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 12:20am

शुक्रिया आ. समर कबीर साहब.. आपने ग़ालिब का शेर quote कर के मुश्किल आसान कर दी 
.
"दैर नहीं,हरम नहीं,दर नहीं, आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पर हम कोई हमें उठाए क्यूँ"...... इसमें दैर, दर, आस्ताँ तीनो ग़ालिब के आसपास मौजूद है ..फिर वो हरम सिर्फ काबे के रेफरेंस में प्रयोग करेंगे ये कहना हठधर्मिता है. प्रतीकात्मकता के साथ अन्याय है.   
अश्क उमड़े तो सुलगने लगी पलकें राशिद
खुश्क पत्तो को जलाते हुए जुगनू निकले ......कोई डिक्शनरी पलक को पत्ते या जुगनू को आँसू नहीं बताएगी. लेकिन ऐसा है तो है ..शायरी प्रतीकों में छुपी हुई है.
आँख का मतलब कहीं झील लिखा हो डिक्शनरी में तो बताइये?
.
झील में चाँद नज़र आए थी हसरत उसकी
कब से आँखों में लिए बैठा हूँ सूरत उसकी ....यहाँ झील और चाँद के प्रतीक को समझने में चूक हुई तो समझो लुत्फ़ गया ..डिक्शनरी देख के शायरी होने लगती तो डिक्शनरी लिखने वाला सबसे बड़ा शायर होता
सादर   

Comment by shree suneel on May 4, 2015 at 12:03am
मैं ख़ूगर इस कदर तन्हाइयों का हो गया यारो
बड़ी मुश्किल से बाहर आज मेरे ये कदम निकले/
आदरणीय शिज्जु सर, ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई. बधाई आपको.
'हरम' पे भी विस्तृत चर्चा हुई. इसका फायदा मुझे भी हुआ. आ0 समर सर, आ0 गिरिराज सर को धन्यवाद.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2015 at 10:53pm
जनाब समर साहब मैंने तो शे'र पहले ही बदल लिया है। वैसे इस पर अच्छी चर्चा हुई है। उम्मीद है पढ़ने वालों को फायदा होगा
Comment by Samar kabeer on May 3, 2015 at 10:33pm
जनाब शिज्जु "शकूर" जी,आदाब,मुझे बताया गया है कि यह सीखने सिखाने का मंच है इसलिये इतनी चर्चा हुई,वैसे आपको अपनी ग़ज़ल पर पूरा इख़्तियार हासिल है,कृपया अन्यथा न लें,मुहब्बत बनाए रखें |
Comment by Samar kabeer on May 3, 2015 at 10:28pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,मैंने भी "हरम" के वही मिनिंग लिखे हैं जो आपकी डिक्शनरी में हैं,चर्चा इस बात पर कि "हरम" के मिनिंग "मस्जिद" नहीं ले सकते, "हरम" अपनी जगह,"मस्जिद" अपनी जगह,हम "हरम" को "मस्जिद" नहीं कह सकते और "मस्जिद" को "हरम" नहीं कह सकते,अब यहाँ सवाल यह पैदा हुवा कि कई उस्ताद शाईरों ने इस शब्द का प्रयोग अपनी शाईरी में किया है तो उन्होंने इसका प्रयोग मस्जिद के मिनिंग में नहीं किया है,जैसे जनाब निलेश "नूर" जी ने इस चर्चा में एक शैर कोट किया है :-

"दैर-ओ-हरम में बसने वालो
मयख़ानों में फूट न डालो"

इस शब्द का प्रयोग अधिकतर "दैर" के साथ हुवा है इसलिये पाठक अपने तौर पर "दैर" के लिहाज़ से इसका अर्थ मस्जिद लगा लेता है,इसी क़बील में ग़ालिब का यह शैर देखिये :-

"दैर नहीं,हरम नहीं,दर नहीं, आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पर हम कोई हमें उठाए क्यूँ"

एक शैर रफ़ीक़ अहमद "क़मर" का देखिये :-

"न दैर में,न हरम में,न ख़ानक़ाह में है
तिरे जमाल का मर्कज़ मिरी निगाह में है"

कहना यह है कि शाईरी में "हरम" शब्द का प्रयोग सही मिनिंग के साथ हुवा है,पढ़ने वाला इसे मस्जिद समझ ले तो इसमें किसका दोष ?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 3, 2015 at 8:53pm

आदरणीय शिज्जु भाई ,  ' हरम ' लफ्ज़  को ले कर एक सार्थक चरचा होते देख मै भी अपनी जानकारी साझा करने से अपने को रोक नही पाया , ताकि मंच किसी सही नतीजे तक पहुँचे और उसका लाभ अन्य सदस्य भी मौका आने पर ले सकें । मेरे पास आ. मुहम्मद मुस्तफा खाँ मद्दाह साहब की  डिक्सनरी है ,  मै उसी हिस्से की तस्वीर  अप लोड कर रहा हूँ , कृपा कर देख लीजियेगा ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2015 at 7:45pm

आदरणीय निलेश भैया आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2015 at 7:44pm

आदरणीया डॉ आशुतोष सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service