1222/1222/1222/1222
मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले
सो जो अल्फ़ाज़ निकले दिल से बाहर वो भी नम निकले
गुजश्ता* वक्त का कोई निशाँ बाकी नहीं लेकिन *गुज़रा हुआ
उसी की जुस्तजू में दिल से खूँ ही दम ब दम निकले
किया जिस वास्ते किस्मत से शिकवा मैंने ऐ ग़मख़्वार
हकीकत में वो सारे ज़ख्म तो तेरे सितम निकले
किसी खूँख्वार* को मतलब नहीं ईमानो दीं से कुछ *रक्त पिपासु
तू आँखें खोल के देखे तो फिर तेरा वहम निकले
मैं ख़ूगर* इस कदर तन्हाइयों का हो गया यारो *आदी
बड़ी मुश्किल से बाहर आज मेरे ये कदम निकले
वफा तुमने निभाई जो रवायत तोड़कर ऐ दोस्त
तुम्हारे वास्ते हर कायदे को भूल हम निकले
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरनीय शिज्जू जी आज फिर आपकी पोस्ट पर हरम का भ्रम दूर करने के लिए आया हूँ वाकई बहुत सार्थक चर्चा हुई ,आपकी बेमिशाल रचना के साथ साथ इतना सार्थक चितन मिला एक बार फिर से बधाई ..अद्भुत है यह मंच ...
भाईजी, बहुत बढिया.. .
किसी खूँख्वार* को मतलब नहीं ईमानो दीं से कुछ
तू आँखें खोल के देखे तो फिर तेरा वहम निकले
वाह वाह !
इस प्रस्तुति पर हुई चर्चा केलिए सभी पाठकों का धन्यवाद कहना चाहूँगा.
शिज्जू भाई. आपके साथ-साथ आदरणीय समर सहब, आदरणीय नीलेशजी, आदरणीय गिरिराज भाई को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ.
शुभेच्छाएँ व बधाइयाँ.
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शुक्रिया आ. समर कबीर साहब.. आपने ग़ालिब का शेर quote कर के मुश्किल आसान कर दी
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"दैर नहीं,हरम नहीं,दर नहीं, आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पर हम कोई हमें उठाए क्यूँ"...... इसमें दैर, दर, आस्ताँ तीनो ग़ालिब के आसपास मौजूद है ..फिर वो हरम सिर्फ काबे के रेफरेंस में प्रयोग करेंगे ये कहना हठधर्मिता है. प्रतीकात्मकता के साथ अन्याय है.
अश्क उमड़े तो सुलगने लगी पलकें राशिद
खुश्क पत्तो को जलाते हुए जुगनू निकले ......कोई डिक्शनरी पलक को पत्ते या जुगनू को आँसू नहीं बताएगी. लेकिन ऐसा है तो है ..शायरी प्रतीकों में छुपी हुई है.
आँख का मतलब कहीं झील लिखा हो डिक्शनरी में तो बताइये?
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झील में चाँद नज़र आए थी हसरत उसकी
कब से आँखों में लिए बैठा हूँ सूरत उसकी ....यहाँ झील और चाँद के प्रतीक को समझने में चूक हुई तो समझो लुत्फ़ गया ..डिक्शनरी देख के शायरी होने लगती तो डिक्शनरी लिखने वाला सबसे बड़ा शायर होता
सादर
आदरणीय शिज्जु भाई , ' हरम ' लफ्ज़ को ले कर एक सार्थक चरचा होते देख मै भी अपनी जानकारी साझा करने से अपने को रोक नही पाया , ताकि मंच किसी सही नतीजे तक पहुँचे और उसका लाभ अन्य सदस्य भी मौका आने पर ले सकें । मेरे पास आ. मुहम्मद मुस्तफा खाँ मद्दाह साहब की डिक्सनरी है , मै उसी हिस्से की तस्वीर अप लोड कर रहा हूँ , कृपा कर देख लीजियेगा ॥
आदरणीय निलेश भैया आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया डॉ आशुतोष सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
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