For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर- चाहता था सँवरना ताजमहल

२१२२/१२१२/२२ (११२)
याद हम को तभी ख़ुदा आया

जब कोई सख्त मरहला आया
.
उम्र भर सोचते रहे तुझ को
अब कहीं जा के सोचना आया
.
और करता भी क्या उसे रखकर 
साथ ख़त ही के, दिल बहा आया.
.
डूबने कब दिया अनाओं ने 
तर्क करते ही डूबना आया. 
.
चाहता था सँवरना ताजमहल
मैं वहाँ आईना लगा आया.
.
तू उफ़क़ अपना देख ले आकर
मैं तेरा आसमां झुका आया.
.
सोचता है अगरचे कब्र में है    
‘नूर’ दुनिया में ख़्वाह-मख़ाह आया
.

निलेश 'नूर'
मौलिक अप्रकाशित 

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2015 at 3:52pm

ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं आ. नूर साहब। दाद कुबूल कीजिए

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 2, 2015 at 11:55am

याद हम को तभी ख़ुदा आया

जब कोई सख्त मरहला आया         बेहतरीन मतला!

और करता भी क्या उसे रखकर 
ख़त के ही साथ दिल बहा आया.      लाजवाब!

चाहता था सँवरना ताजमहल
मैं वहाँ आईना लगा आया.            मील का शेर!

बेहतरीन गजल पर ढेरों दिली दाद व् मुबारकबाद कबूल करें!आ० 'नूर' सरजी!

Comment by umesh katara on May 2, 2015 at 11:31am

अच्छी गजल के लिये बधाई निलेश नूर साहेब

Comment by Samar kabeer on May 2, 2015 at 11:00am
जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,वाह वाह वाह,क्या ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है,तबीअत ख़ुश हो गई,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 10:20am
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल बनी " चाहता था सँवरना ताजमहल "
और यह तो , बस कहना ही क्या ,
उम्र भर सोचते रहे तुझ को
अब कहीं जा के सोचना आया॥
बहुत बहुत बधाई, आदरणीय नीलेश नूर जी, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service