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इस्लाह हेतु ..बड़ी बहर पे एक ग़ज़ल

२१२/ २१२/ २१२/ २१२// २१२/ २१२/ २१२/ २१२  
हर तरफ भागती दौडती ज़िन्दगी बेसबब घूमती इक घड़ी की तरह
हमसफ़र है वही और राहें वही, मंज़िले हैं मगर अजनबी की तरह. 
.
आज के बीज से उगते कल के लिए मुझ को जाना पड़ेगा तुम्हे छोड़कर
तुम भी गुमसुम सी हो मैं भी ख़ामोश हूँ लम्हा लम्हा लगे है सदी की तरह
.
श्याम की संगिनी बाँसुरी ही रही, प्रीत की रीत भी आज तक है यही
कर्म की राह ने प्रेम को तज दिया, राधिका रह गयी बावरी की तरह.
.     
ये अलग बात है उनसे बिछड़े हुए जाने कितने बरस हो गए हैं मगर
ज़ह’न में याद उनकी हमेशा रही ख़ुशबुओं की तरह गुदगुदी की तरह.  
.
सुब’ह से शाम तक शाम से रात तक खेल चलता रहा हम भी चलते रहे
थक गए गिर पड़े उठ के चलने लगे ज़िन्दगी कट गयी नौकरी की तरह
.  
बाल पकने लगे झुर्रियाँ पड़ गयी मैं बदल सा गया वो बदल सी गयी
पर मेरी याद की डायरी में कहीं आज भी दर्ज है षोडशी की तरह.
.
बात वो मेरी कोई भी सुनता नहीं आह उस तक मेरी कोई पहुँची नहीं
क्या ख़ुदा इस जहाँ में रहा ही नहीं या ख़ुदा भी हुआ आदमी की तरह.
.
नूर 
मौलिक अप्रकाशित 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2015 at 4:37pm
क्या कमाल की रवानी है निलेश भैया बहुत बहुत बधाई आपको।
//याद उनकी हमेशा रही ज़ह’न में ख़ुशबुओं की तरह गुदगुदी की तरह.// वाह
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 3, 2015 at 1:53pm

शुक्रिया आ. मनोज जी...षोडशी 16 वर्षीय कन्या को कहते हैं..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 3, 2015 at 1:52pm

शुक्रिया आ. दिनेश भाई जी 

Comment by मनोज अहसास on May 3, 2015 at 1:10pm
षोडशी से क्या अभिप्राय हैं सर कृपियाथोडा समझा दे
मेहरबानी होगी
सादर
Comment by मनोज अहसास on May 3, 2015 at 12:50pm
बहुत खुब सर
आपकी ग़ज़ल पढ़कर हम जैसे बेबहर ग़ज़ल कहनेवाले भी बहुत सीख सकते है
सादर नमन
Comment by दिनेश कुमार on May 3, 2015 at 12:00pm
मतला से आखिरी शे'र तक लाजवाब आदरणीय निलेश भाई जी। बहुत खूब। ढेरों दाद व मुबारकबाद।

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