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सत्य.....

पंच महाभूतों की आस्था
विज्ञान भी मानता- शोध में,
वेद-पुराणों, महाकाव्यों के आधार बिन्दु
जीवन के सेतु-बंध,
उपकृत करते-
क्षित, जल, पावक, गगन व समीर
एक दूसरे के पूरक
महाकाश से घटाकाश तक सर्वत्र व्यापी
तल-वितल, अतल भी
धारण करते पिण्ड स्वरूप.....अखण्ड ब्रह्म,
कण-कण रोमांच से भरपूर
क्षर कर भी सृजन के चंद्र-सूर्य
चक्राकार आवृत्ति के द्विगुण- सघन तम व तेज
विस्तारित करते रहस्य
आकार लेते, आभाष - अनुभव
दृश्य-अदृश्य कदाचित सम्मिश्रण ही
जीवन प्रगतिवान,
बीज रूप, अव्यक्त एवं असीम
आत्मा का आभार,
देह, अ-िस्थत्व का बोध कराती
अहं में प्रकट होती-इन्दियां,
आँख, कान, नाक, मुॅह, और त्वचा
निरन्तर उत्पादन करते
दृश्य, श्रवण, गंध, स्वाद, और स्पर्श
अनुभूतियां संगठित करती
एक संयोजक - मन, संशय का सम्राट
नियु-िक्त करता अन्यान्य रसेन्दियां
घेर लेती दुर्गम दुर्ग
प्रहार करते षट विकार
क्षत-विक्षत होते द्वार, प्राचीर सम्पूर्ण दुर्ग भी
दुर्ग का सेनापति- आत्मा,
नागों का मर्दन कर रास रचता
आनन्दित होता कण-कण
रेत, पल-पल संलग्न है

सृजन में
आत्मा निर्लिप्त......अमरता में संलिप्त
स्थापित करना चाहता---- सत्य !

के.पी.सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by मिथिलेश वामनकर on May 5, 2015 at 10:37pm

बहुत सशक्त रचना

आदरणीय केवल जी इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 5, 2015 at 9:50am

वाह! बहुत उत्तम प्रस्तुति, आदरणीय केवल जी. एक सफल सार्थक यात्रा शब्दों की, सर्वत्र  सत्य के लिए. बहुत-बहुत बधाई आपको

Comment by Samar kabeer on May 4, 2015 at 11:46pm
जनाब केवल प्रसाद जी,आदाब,लेखन थोड़ा सरल करलें,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 4, 2015 at 9:04pm
बहुत ही सारगर्भित प्रस्तुति, कितनी लम्बी यात्रा है सत्य की।
किती सरल अनुभूति है सत्य की , पल पल , दृष्टि चाहिए , बस।
बहुत बहुत बधाई , आदरणीय केवल प्रसाद जी इस प्रस्तुति पर, सादर .

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