For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“सुनो! कितनी अच्छी हो तुम, कितना प्रेम है तुम्हारे पास मेरे लिए. मेरा शादी-सुदा होना भी तुमने अपनी गहराइयों से स्वीकार लिया है. कुछ कहो न!, ऐसा क्या है मुझमे..?”

“ मुझे, तुमसे सब कुछ मिल रहा है जो किसी से शादी के बाद जो मिलता. और मैं तुमसे अपनी मर्जी तक सम्बन्ध बनाये रख सकती हूँ, क्यूंकि तुम शादी-शुदा होने के कारण, समाज अपने परिवार और क़ानून के डर से मुझसे जबरदस्ती नहीं कर सकते. नहीं तो आजकल के बेचलर...तौबा-तौबा “

   जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 6, 2015 at 12:33am

आदरणीय जितेन्द्र जी आपकी बेहतरीन लघुकथाएं पढ़ चुका हूँ. 

इस लघुकथा को पढ़कर भी कमेन्ट नहीं कर रहा था लेकिन इस संशोधन के बाद बात थोड़ी खुली है. 

इस नई आधुनिक मानसिकता के चित्रण में थोड़ी और सघनता की गुंजाइश लग रही है. यद्यपि लघुकथा के शिल्प को बिलकुल नहीं समझ पाया हूँ लेकिन एक पाठक के रूप में मुझे गुंजाइश लग रही है. सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 12:33am

आदरणीय कृष्णा जी. आपकी गहन प्रतिक्रिया व् लघुकथा की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 12:27am

आदरणीय लक्ष्मण जी. सर्वप्रथम लघुकथा पर आपके स्नेहिल मार्गदर्शन का हार्दिक आभार. आपकी प्रतिक्रिया //आखिर शादी सुदा होने पर भी अन्य से रिश्ता रखने पर बदनामी का डर क्यों नहीं// व् सुझाव अनुसार मैंने लघुकथा में संशोधन किया है, जिसमे स्पस्टीकरण की पूर्ण कोशिश की है.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 12:20am

आदरणीय डा. विजय जी. लघुकथा पर प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 7:38pm

आ० जितेन्द्र भाई लघुकथा का शीर्षक और बेहतर होना चाहिए था...जो विषय से सीधे तौर पे कनेक्ट हो!!

//क्यूंकि तुम शादी-शुदा होने के कारण, समाज अपने परिवार और क़ानून के डर से मुझसे जबरदस्ती नहीं कर सकते//

''जब तक चाहो जुड़े रहो,अपने मनमाफिक संबंध तोड़ दो,और इस बाबत शादी-शुदा होने के कारण को प्रपंच न कर सके या दबाव न डाल सके'' यानी पूर्ण स्वतंत्रता''....आधुनिक सोच में ढलते रिश्तों! बहुत ख़ूब जितेन्द्र भाई! हार्दिक बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on May 5, 2015 at 5:03pm
इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीय
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 5, 2015 at 11:58am

रचना पर लेखक का स्पष्टीकरण किये बगैर पाठक को कहानी समझ आ जाए तभी वह सार्थक लघु कथा है | इस लघु कथा को पढ़कर 

यह स्पष्ट नहीं हो रहा की आखिर शादी सुदा होने पर भी अन्य से रिश्ता रखने पर बदनामी का डर क्यों नहीं | सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 5, 2015 at 11:28am
प्रगति के सोपान पर एक और कदम, बधाई, प्रिय जीतेन्द्र जी, सादर।
Comment by Ravi Prabhakar on May 5, 2015 at 8:28am

/ मुझे तुम्हारे कारण बदनामी का कोई डर भी नही, जो हर लड़की को किसी बेचलर के साथ रहता है...” / मैं समझ नहीं पाया आदरणीय जितेन्‍द्र भाई की विवाहित व्‍यक्‍ित से नाजायज संबंध होने पर बदनामी का डर क्‍यों नहीं है ? कथा कुछ अस्‍पष्‍ट सी लग रही है भाई । शीर्षक भी प्रभावशाली नहीं लगाा । आपसे तो इससे बहुत ज्‍यादा की अपेक्षाएं हैं भाई जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service