For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मध्य अपने जम गयी क्यों बर्फ़.. गलनी चाहिये
कुछ सुनूँ मैं, कुछ सुनो तुम, बात चलनी चाहिये

खींचता है ये ज़माना यदि लकीरें हर तरफ  
फूल वाली क्यारियों में वो बदलनी चाहिये

ध्यान की अवधारणा है, ’वृत्तियों में संतुलन’
उस प्रखरतम मौन पल की सोच फलनी चाहिये !

हो सके तो बन्द सारी खिड़कियाँ हम खोल दें
अब शहर में ज़िन्दग़ी की साँस चलनी चाहिये

देश के उत्थान की चिंता करे सरकार ही ?
राष्ट्र-हित की आग तो हर दिल में’ जलनी चाहिये    

भेद मत्सर औ’ घृणा के रोक ले अवशिष्ट जो-
हाथ में हर नागरिक के एक छलनी चाहिये
************
-सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1178

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on May 8, 2015 at 2:50am

आदरणीय,
अरूज़ के अतिरिक्त ग़ज़ल के अन्य पहलुओं पर लोगों के विचारों में भिन्नता हो सकती हैं, प्रत्येक विचार का सम्मान होना चाहिए ......
किसी विषय में रूढ़ होना मेरी आदत नहीं .....

ऐसी भावभूमि की ग़ज़ल !!!
यह तो आप भी मानते हैं कि प्रयोगधर्मिता का सम्मान होना चाहिए मगर प्रयोग करने के पूर्व स्थापित अवधारणाओं से जूझना आवश्यक होता है|
जैसे दोहे के प्रति आप सरलतम हुए हैं और "यू नो आई मीन" की जमीन को छू रहे हैं वैसे ही ग़ज़ल के प्रति आपका नजरिया सदैव प्रयोगधर्मी ही न रहे आपसे मुझे बस इतनी सी अपेक्षा है ....

Comment by umesh katara on May 7, 2015 at 9:49pm

वाह सर क्या बात है 
देश के उत्थान की चिंता करे सरकार ही ?
राष्ट्र-हित की आग तो हर दिल में’ जलनी चाहिये    


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 8:59pm

आदरणीय विजय प्रकाशजी, आपकी मुखर शुभकामना से मैं वस्तुतः संकोच में गड़ा जा रहा हूँ. यह ग़ज़ल कालजयी ग़ज़लकार दुष्यंत की एक प्रसिद्ध ग़ज़ल की ज़मीन पर अवश्य है. यही इस ग़ज़ल की विशिष्टता भी है. किन्तु, इस संदर्भ का कोई साम्य यहीं समाप्त हो जाता है. आगे, मैं अपनी समस्त सीमाओं के साथ इस मंच के सुधीजनों के अनुमोदन आकांक्षी हूँ.
सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 8:58pm

आदरणीय़ सुशील सरनाजी, आपकी सदाशयता के प्रति नत हूँ. आपने शेर-दर-शेर अपनी भावनाएँ शब्दिक कर मुझे उपकृत किया है. कृतकृत्य हूँ आदरणीय.
हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 8:57pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्माजी, ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 8:57pm

आदरणीय आशुतोषभाईजी, आपने इस प्रस्तुति के सभी शेरों के निहितार्थ दे दिये. आपको प्रस्तुति पठनीय लगी , इस हेतु हार्दिक धन्यवाद कह रहा हूँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 8:57pm

अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद, भाई कृष्णा जान गोरखपुरी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 8:56pm

आदरणीय शरदिन्दुजी, आपके संवेदनशील एवं सचेत हृदय की ग्राह्यता और उसकी स्वीकृतियाँ इस तथ्य के प्रति आश्वस्त तो कर ई देती हैं कि प्रस्तुत हुआ रचनाकर्म अनुमन्य है. किसी रचनाकार के लिए इससे बढ़ कोई पुरस्कार और क्या होगा !
आप मेरी प्रस्तुति पर आये यह इसके लिए भी सौभाग्य है.
सादर आभार

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on May 7, 2015 at 8:27pm

"एक और प्रखर दुष्यंत कुमार"
स्‍वागत, बधाई

Comment by Sushil Sarna on May 7, 2015 at 8:21pm

मध्य अपने जम गयी क्यों बर्फ़.. गलनी चाहिये
कुछ सुनूँ मैं, कुछ सुनो तुम, बात चलनी चाहिये

… मौन होते अंतरंग रिश्तों को सकारात्मक रुख देते इस शे'र के लिए निःशब्द हूँ सर … वाह

खींचता है ये ज़माना यदि लकीरें हर तरफ
फूल वाली क्यारियों में वो बदलनी चाहिये

....... बहुत सुंदर .... कितनी सादगी से आपने उभरती नफरतों को मिटाने की पुरज़ोर कोशिश की है सर … नमन

ध्यान की अवधारणा है, ’वृत्तियों में संतुलन’
उस प्रखरतम मौन पल की सोच फलनी चाहिये !

पुनः इन पंक्तियों में निहित भावों की प्रस्तुति पर निःशब्द हूँ सर … वाह

हो सके तो बन्द सारी खिड़कियाँ हम खोल दें
अब शहर में ज़िन्दग़ी की साँस चलनी चाहिये

… आंतरिक पनपती घुटन हेतु सकरात्मक पंक्तियों के लिए बहुत खूब और वाह वाह सर

देश के उत्थान की चिंता करे सरकार ही ?
राष्ट्र-हित की आग तो हर दिल में’ जलनी चाहिये

…राष्ट्र हित के लिए कितनी सुंदर सोच की प्रस्तुति की आपने सर … नमन

भेद मत्सर औ’ घृणा के रोक ले अवशिष्ट जो-
हाथ में हर नागरिक के एक छलनी चाहिये

शानदार और दमदार बात कह गए सर आप इन पंक्तियों में … इस सकारात्मक सोच वाली खूबसूरत ग़ज़ल के हर शे'र पर हमारी तालियों को स्वीकार करें आदरणीय सौरभ जी … सादर नमन।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service