"भैया, इनके पेट में असहनीय दर्द हो रहा है, शराब मांग रहे हैं|"
"भाभी, पहले कितनी पीते थे, छुड़ा रहे हैं तो थोड़ा दर्द होगा ही|"
"आप सही कह रहे हैं...हम नहीं पीने देंगे, अरे माँ जी!" दरवाजे पर सासुमाँ को शराब की बोतल के साथ देखकर बहू आश्चर्यचकित रह गयी|
"माँ ये क्यों लाई? और पैसे कहाँ से लाई?"
"मेरी दवाई लौटा दी मैनें बेटा, उसका दर्द सहन नहीं हो रहा...."
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
इस लघुकथा की अंतर्धारा दो ओर इशारा करती है. एक, ये जीवन न सफल तो मौत ही सही. दो, माँ की ममता निरी भावुकता को प्रश्रय दे तो बच्चों और परिवार की हालत यही होती है.
यदि पहला वाला इशारा मान लें तो कुछ नहीं कहना. लेकिन दूसरे इशारे पर कहने को बहुत कुछ है. यह ममता नहीं मूर्खता है. इसी समाज ने ऐसी माँओं का उदाहरण भी जाना है जिनने अपने बेटों को तपाया है, इतना कि वे शिवाजी बन कर सफल हुए हैं. देश के निराले राज्य पंजाब का अतीत तो ऐसी माताओं के सत्कृत्यों से भरा पड़ा है. लेकिन यही पंजाब आज उस दौर से गुजर रहा है जिसका भयावह प्रतिफल अगली पीढ़ियाँ महसूसेंगीं.
आपकी लघुकथा प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय चंद्रेश कुमारजी.
मार्मिक सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।
पुत्र का असहनीय दर्द कैसे सहन होता माँ को ,सुंदर लघुकथा बधाई चन्द्रेश जी
सफल लघुकथा
बधाई आदरणीय चंद्रेश जी, बहुत मार्मिक लघुकथा प्रस्तुत की है आपने.
माँ की ममता , बहुत भावपूर्ण और मार्मिक लघुकथा , बधाई स्वीकारें..
बहुत सुंदर , आदरणीय चंद्रेश जी. बड़ी मार्मिक लघुकथा प्रस्तुत की है आपने.
माँ की ममता का बढिया उदाहरण दिया आपने , लघु कथा के लिये बधाइयाँ आपको ॥
सुन्दर कथा! भाई चंद्रेश कुमार जी ...... एक माँ ही ऐसा दिल रखती है जो बच्चो का दर्द और दुःख बर्दाश्त नहीं कर पाती.
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