"माननीय न्यायाधीश महोदय, मेरे बाहर जाने का फायदा उठा कर, मेरे छोटे भाई ने घर के बीच की दीवार बनाते समय मेरी तरफ छः इंच ज्यादा खींच ली, और मेरे भाग पर कब्ज़ा कर लिया|"
"नहीं आदरणीय महोदय, जो स्थान मैनें लिया, उस पर मेरा ही अधिकार है|"
"यह दीवार कब बनायी गयी?" न्यायाधीश महोदय ने पूछा
"एक माह पूर्व हमारे पिताजी की मृत्यु के कुछ दिनों के बाद|"
"बंटवारा किसने करवाया?"
"हमारे चाचाजी ने|"
"चाचाजी की बात क्या पिताजी भी मानते थे?"
"नहीं, पिताजी के समय तो वो हमारे घर ही कम आते थे|"
"फिर उनकी बात किसने मानी?"
दोनों भाइयों ने एक दूसरे की ओर इशारा कर दिया, लेकिन दोनों की आँखें झुकी हुईं थी|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय गुरूजी योगराज प्रभाकर जी सर के चरण स्पर्श, जिन्होंने इस लघुकथा को लिखने के लिए प्रेरित किया और उनके eternal आशीर्वाद और मार्गदर्शन के लिए !!
आप सभी सुधीजनों के आशीर्वाद हेतु हृदय से आभारी हूँ आदरणीय राजेश कुमार जी, आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, भाई जितेन्द्र पस्टारिया जी, आदरणीय विजय निकोरे जी
लघुकथा अच्छी लगी, हार्दिक बधाई।
बस! यही सब कुछ प्रमुख कारण है अदालतों में फाइलें बढ़ने के. बहुत खूब आदरणीय चंद्रेश भाई जी. हार्दिक बधाई
अच्छी लघुकथा के लिए बधाई, आदरणीय चन्द्रेशजी..
बहुत अच्छी लघु कथा ,,हार्दिक बधाई
रचना को पसंद करने के लिये हृदय से आभारी हूँ आदरणीय नीलेश जी सर, आदरणीय महिमा श्री जी, आदरणीय मिथलेश वामनकर जी
सफल लघुकथा हेतु बधाई निवेदित है
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति.. बहुत -2 बधाई आपको
संवाद में सन्देश दे गए ..बहुत खूब
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