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शक्ति छंद (नेपाल भूकंप )

  

अभी फूल पूरे खिले भी न थे

नई जिंदगी से मिले भी न थे

चली बेरहम वक़्त की आरियाँ

कटे शीश धड़ से मिटी क्यारियाँ

 

कहर बन फटी थरथराती जमी

जहाँ सांस आई वहीँ पे थमी

दिखाई अजब काल ने क्रूरता

फिरा क्रुद्ध यमराज यूँ घूरता

 

निवाले कई काल के हैं बने

दबे हर जगह जिस्म खूँ से सने

बचा जो यहाँ ढूँढता आसरा

सहारा बना एक का दूसरा

 

बचे काल से एक भाई बहन

सिसकते हुए घाव खाए गहन

हुए मूल से देख  महरूम ये

लिपटते हुए आज  मासूम ये

 

न माँ का पता ना पिता का पता

नहीं सोच पाए हुई क्या खता

कहर कुदरती बाढ़ क्या जलजला

कहाँ उम्र ये सोचने की भला

 (मौलिक एवं अप्रकाशित)

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2015 at 11:34am

दुखी ज़िन्दग़ी है भयावह घड़ी
नज़र आपकी भी गहनतम पड़ी
बहुत कारुणिक भाव शब्दों ढले
हृदय से बधाई मिले औ’ फले

आदरणीया राजेशकुमारीजी, आपके प्रयासों पर मन प्रसन्न है. हार्दिक बधाइयाँ.
वैसे प्रतीत हो रहा है कि आपकी उपस्थिति इस बार के छन्दोत्सव में नहीं बनने वाली है. यह प्रस्तुति उसी एवज़ में दिख रही है.
बन सके तो उत्साहवर्द्धन हेतु अवश्य आइयेगा.


एक बात :
ज़मीं और थमी की तुकान्तता कैसे स्वीकार्य हो ? इसे देख लीजियेगा.

सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2015 at 11:06am

बहुत सुंदर ,हृदयस्पर्शी भाव उभर कर आये है,रचना में. बहुत-बहुत बधाई आदरणीया राजेश दीदी

Comment by Samar kabeer on May 13, 2015 at 10:48am
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,दर्द भरी और दिल को छू लेने वाली इस भावपूर्ण रचना के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 13, 2015 at 10:30am

नेपाल में पुनः आये भूकम्प पर शक्ति छंद में सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी 

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