For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ; यकायक चराग़ों को क्या हो गया है

122 122 122 122

यकायक चराग़ों को क्या हो गया है
बुझे थे, जले फिर, ये किसकी दुआ है.

चलो और दिन तो है बाकी, रूकें क्यों
शजर पे अभी नूर देखो झुका है.

इसी आरज़ू में कटी ज़िन्दगी ये
पता तो चले क्या हमारा हुआ है.

अभी छू नहीं सर्द हांथों से ऐ शब
अभी तो मुझे उसने मन से छुअा है.

मुहब्बत किसे रास आई है इसमें
अमीरी, ग़रीबी, ज़माना, जुआ है.

- श्री सुनील

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 959

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shree suneel on May 15, 2015 at 11:24am
शुक्रिया आदरणीय समर कबीर सर, एक समाधान चाहता हूं आदरणीय. क्या 'शुआ' लफ्ज़ सही होगा काफिया में. एक टिप्पणी में मैंने विस्तार से बताया है इसपर. कृपया इस बिन्दु पे मार्गदर्शन करें. सादर.
Comment by shree suneel on May 15, 2015 at 11:10am
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद आदरणीय मिथलेश वामनकर सर. त्रुटि मेरी नज़र में है. एक टिप्पणी में मैंने एक शंका - समाधान चाहा भी है, मार्गदर्शन अपेक्षित है. सादर.
Comment by shree suneel on May 15, 2015 at 10:57am
सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय आशुतोष जी.
Comment by shree suneel on May 15, 2015 at 10:56am
शुक्रिया.. कृष्ण मिश्रा जी.
Comment by Samar kabeer on May 15, 2015 at 10:49am
जनाब श्री सुनील जी ,आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं।

जनाब मिथिलेश जी की बात पर ध्यान दीजियेगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 15, 2015 at 1:58am

आदरणीय सुनील जी इस प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई 

आप काफिया दुरुस्त कर ले तो बेहतरीन ग़ज़ल तैयार है.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 9:46pm

आदरणीय सुनील जी इस बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी दाद क़ुबूल करें सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 14, 2015 at 2:31pm

सुन्दर प्रयास बधाई आदरणीय सुनील जी! गजल के शेर खिलकर सामने नही आ रहें है,समय के साथ धीरे-धीरे निखार आता जायेगा!शुभकामनाएं!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2015 at 1:57pm

झुका वाला शेर बदल लें तो भी बात बन जाएगी ..और बेहतर बनेगी 

Comment by shree suneel on May 14, 2015 at 1:08pm
आदरणीय नदीम जी, सराहना के लिए धन्यवाद. त्रुटि दूर करने की कोशिश करता हूँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service