“पापा, मुझे ज्वाइंट और न्युक्लियर फ़ैमिली के मेरिट्स-डिमेरिट्स के बारे में पढ़ना है.” राजू ने अपने पापा से कहा.
फिर, चहकते हुये पूछा, "पापा, ज्वाइंट फ़ैमिली में बडा मजा आता होगा न.. सब एक साथ रहते होंगे. खेलने को बाहर भी नहीं जाना पड़ता होगा”,
“हाँ, बेटा मजा तो बहुत आता था. तेरे दादा-दादी, चाचा-चाची, हमसभी एक साथ रहते थे.. हरतरह से सुख-दुःख में एक साथ.. पर तेरे जन्म के बाद से हम भी न्युक्लियर फ़ैमिली हो गये.”
तभी किचेन से राजू की माँ का चीखता हुआ स्वर गूँजा, “राजूऽऽ.. "
वो एकदम से पापा और राजू के बीच आ गयीं, "जब देखो टाइम पास करते रहते हो. सोशल-स्टडी के बाद मैथ्स भी देखना है..”
फिर लगीं धाराप्रवाह ज्वाइंट फ़ैमिली के डिमेरिट्स बताने. राजू को उनके कई प्वाइंट आउट आफ़ सिलेबस लग रहे थे.
उधर पापा अपने स्मार्टफ़ोन पर पुराने एल्बम के स्कैन्ड फैमिली फोटो को एक-एक कर उँगलियों से चलाते हुए देखते जा रहे थे, मानों ’आउट आफ़ सिलेबस’ लगते डिमेरिट्स को एक बार फिर से समझने की कोशिश कर रहे हों.
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शुभ्रांशु
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय हरि प्रकाश जी,
रचना पर विचार रखने के लिये धन्यवाद.
संयुक्त परिवार के बिखराव का कारण सिर्फ इंसान का आत्मकेंद्रित हो जाना है । बहुत ही कठोर मन का परिचायक है यह निजत्व की भावना । सुंदर चित्रण किया है आपने अपने इन चंद पंक्तियों में परिवार के बिखराव को । इस विषय पर बहुत लिखने की जरूरत है । बधाई आपको आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी
इस हृदयस्पर्शी और सार्थक लघुकथा पर तहे दिल से हार्दिक बधाइयाँ आ० शुभ्रांशु जी!
जी आदरणीय शुभ्रांशु जी. यह जो परिवार के मस्तिष्क में होने वाले जोड़ घटाने ही सबसे बड़ा कारण है संयुक्त परिवारों को बांटने का. जबकि मैंने देखा है संयुक्त परिवार में बच्चे कब बड़े हो जाते है माँ-बाप को पता ही नहीं चलता. फिर बच्चों के अन्दर संस्कार, बड़ों के प्रति आदर और अपने से छोटो के लिए प्यार उसी पेड़ से सीखने को मिलता है. जो आजकल अलग अलग शाखाओं में बंटता जा रहा है. यहाँ तक कि संयुक्त परिवार में रहने से त्याग और सहनशीलता भी सीखने को मिलती है. कुछ पल की स्वतंत्रता और अनुशाशन के भय से एक नवदम्पति अपना अलग परिवार बना तो लेते है क्युकी उन्हें किसी की जरुरत ही नहीं , अपना कमाना खाना और बच्चों की परवरिश. किन्तु जब यह न्यूक्लियर फेमिली किसी समस्या में फस जाती है तो अपने आपको अकेला और असुरक्षित समझकर अवसाद में आ जाती है और अपने निर्णय भी नहीं ले पाती है.
आपने परिवारों में होने वाली एक सामयिक लघुकथा साझा की है आदरणीय शुभ्रांशु जी. आपको प्रस्तुति पर पुन: हार्दिक बधाई
सादर!
बहुत सुन्दर रचना आदरणीय , संयुक्त परिवार और एकल परिवार के बारे में बहुत अच्छा विश्लेषण किया है आपने..
आदरणीय शुभ्रांशु जी , शानदार रचना , न्युक्लियर फ़ैमिली और जॉइंट फ़ैमिली की मेरिट्स और डिमेरिट्स को बखूबी बयाँ कर दिया आपने ! बधाई ,सादर .
आदरणीया नेहा जी,
शुक्रिया.
आदरणीय अमन जी
रचना पर विचार देने के लिए धन्यवाद.
आदरणीय् जितेन्द्र जी,
जीवन के मैथ्स ने सारी सोशल स्टडी को बिगाड़ के रख दिया है. सभी कुछ तो डिवाइड होता जा रहा है. परिवार अपने आप को समेटता जा रहा है.
रचना पर अपने विचार देने के लिये घन्यवाद..
सुंदर लघु कथा , आ0 शुभ्रांशु जी , अच्छा संदेश दे रही है आपकी लघु कथा ।
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