“ओय! रितु.. अब बता कैसी लग रही हूँ...?” सोनिया ने पूरा ट्रडिशनल श्रृंगार करके, अपनी फ्रेंड से पूछा
“अरे! सोनिया. तू तो बिलकुल अबला लग रही है यार. भारतीय नारी..हा हा हा हा”
“हाँ! यार..अबला ही तो दिखना होगा. ऐसा मेरे वकील का कहना है, ताकि कल कोर्ट में जज सहानुभूति के तौर पर जल्दी से मेंटेनेंस बना देगा तो मुझे अपने हसबेंड के घिसे-पिटे विचारों और बूढ़े सास-ससुर की खांसी-खुजली से छुटकारा मिल जाएगा.”
"उफ्फ!! बड़ी दूर की सोच होती है यार, वकीलों की.. अब चल ये पकड़ तेरे जींस-टॉप, चेंज कर और जल्दी चल के कोल्ड कॉफ़ी पिलवा ”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय जितेंद्र जी,
सुन्दर कथा. वास्तविकता के बहुत ही पास. मेरे जाननेवाली एक लड़की ने इसी तरह से जज के सामने नाटक कर के लडके वाले से दो लाख झटक लिये थे.
आज सम्बन्ध एक तरह से लेना और देना हो गया है. हर जगह क्या मिला का फ़ार्मुला लगता है.
सादर.
फ्लेक्सिबिल नहीं रंगे सियार् हैं ये लोग
सचमुच में इंसानियत के गद्दार हैं ये लोग
आदरणीय विनय जी. आप जैसे लघुकथाकार से सराहना पाना ,बड़ा संतोषजनक लगता है, आपका हार्दिक आभार
सादर!
आदरणीय मिथिलेश जी. लघुकथा पर आपकी स्वीकारोक्ति बहुत मनोबल बढाती है, आपकी सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार
सादर!
आदरणीय हरिप्रकाश जी. हमारा संवैधानिक लचीलापन हर मामले में काम आ सकता है. बस उपयोग करने वाला हुनरमंदी होना चाहिए
सादर!
आदरणीय वीरेंद्र जी. आपकी उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार
सादर!
आदरणीय अमन जी. आपकी उपस्थिति व् रचना की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार
सादर!
आदरणीय गिरिराज जी. आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से लघुकथा को सार्थकता मिलती है. आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
अपना काम निकालने के लिए किसी भी स्तर पर जाने को तैयार , सुन्दर विषय पर अच्छी लघुकथा ..
आदरणीय जितेद्र जी बहुत बेहतरीन विषय उठाया है आपने इस लघुकथा के माध्यम से
बहुत बधाई इस लघुकथा हेतु
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