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विकासवाद का चरित्र

सड़क, गली, कूचों व मैदानों में
उन्मादी संक्रमण मस्ती करते
विकल, प्राण पखेरू
समूहों में फड़फडाते- गिड़गिडाते
गगन, हवा, दीवारों में सिर मार कर डूब जाते
सागर, सरोवर, ताल, नदी, झीलों में
बजबजाता विकासवाद
अशिष्ट पन्नियों से ।
दलदल में कमलदल, दलगत उन्मुक्त पर
स्थिर, मूक, भावहीन संज्ञाएं
क्रियाशील भौंरे सब हवा हो गए
गुम गयीं - तितलियॉं
सौन्दर्य निगलती- वादियॉं
दिशाएं- दिशाहाीन, पूर्णत: शुष्क पछुवा पर निर्भर
मुट्ठियों में बन्द भाग्य- हतोत्साहित
मील के पत्थर लहूलुहान करते
घरती कॉंप जाती
उछलते कूदते मासूम बच्चे
तितलियों से इतर पकड़ते उड़ती पन्नियॉं
सहेज लेते बड़े प्यार से
अशिष्ट बोरों में
साफ झलकता
विकासवाद का चरित्र।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Views: 564

Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 19, 2015 at 8:24pm

आ0  श्याम नारायण भाई  जी,  प्रणाम.. रचना का अनुमोदन करने हेतु आपका हार्दिक आभार.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 19, 2015 at 8:22pm

आ0  समर भाई  जी,  आदाब.  आपको रचना पसंद आई, आपका हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 19, 2015 at 5:54pm

छलते कूदते मासूम बच्चे
तितलियों से इतर पकड़ते उड़ती पन्नियॉं
सहेज लेते बड़े प्यार से
अशिष्ट बोरों में
साफ झलकता
विकासवाद का चरित्र।

आदरणीय केवल जी बहुत ही उम्दा रचना हुई है हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 19, 2015 at 4:22pm

बहुत बढ़िया . क्या विकास का खाका खींचा है .

Comment by Shyam Narain Verma on May 19, 2015 at 10:52am
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई 
Comment by Samar kabeer on May 19, 2015 at 10:17am
जनाब केवल प्रसाद जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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