आज नयी बहू ने नौकर को बड़ी बहू के कमरे से रात में निकलते देख लिया । रात आँखों आँखों में बीत गयी , किससे क्या पूछे | अगली सुबह बड़ी बहू ने उसके चेहरे को पढ़ लिया और उसे अपने कमरे में बुलाया ।
" मेरे चरित्र के बारे में कुछ धारणा बनाने से पहले मेरे पति को भी जान लो , कई कई महीने घर नहीं आता है और वहाँ क्या क्या करता है , ये सबको पता है "।
छोटी बहू स्तब्ध , कुछ कहे उससे पहले ही वो फिर बोली " और हाँ , जब शरीर को ज़रूरत होती है तो सही गलत कुछ नहीं होता "।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी..
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी.
आदरणीय विनय जी.
अन्नमय कोष को परिलक्षित करती एक सुन्दर कथा.
सादर.
बहुत उम्दा , बधाई इस लघुकथा के लिए .. |
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी..
छोटी बहू ही नहीं . पाठक भी स्तब्ध .
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