" मैंने तो बिना पैसे दिए ही शॉपिंग कर ली | वो बाजार में एक छोटी सी किराने की दुकान है न , आज वहां चली गयी थी | सामान लेने के बाद उसने पैसे लेने से इंकार कर दिया, बोला कि वो आपको जानता है और इसलिए पैसे नहीं लेगा "|
वो सोच में पड़ गया , अपने गाँव का छोटी जात का दुकानदार , जिसकी बेटी की शादी में १०१ रुपये देकर उसने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी |
आज वो अपने आप को बहुत छोटा महसूस कर रहा था |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बिलकुल सही कहा आपने आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी , बहुत बहुत आभार.
आदरणीय विनय जी
सुन्दर कथा. दूसरों को छोटा बनाते और बताते कब स्वय्ं छोटा हो जाता है पता ही नहीं चलता.
सादर.
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी । आप जैसे संजीदा लेखक से ऐसी टिप्पणी मिलना बहुत सुकून दे जाता है । सादर..
बढ़िया बहुत बढ़िया
दिल खुश कर दिया
मानवीय सदगुणों की पराकाष्ठा का बहुत सुन्दर चित्रण दिल को भा गया. विडम्बनाओं और विसंगतियों के बीच नैतिक मूल्यों को उभरती इस सकारात्मक लघुकथा के लिए बहुत बहुत आभार
बहुत बहुत आभार आदरणीय विनोद खगनवाल जी आपके उत्साह बढ़ाने वाले शब्दों के लिए..
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी । बिलकुल सच कहा आपने..
बहुत बढ़िया कहानी , हार्दिक बधाई आपको |
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