चकोर सवैया (7 भगण +गुरु लघु ) 23 वर्ण
चाबुक खा कर भी न चला अरुझाय गया सब घोटक साज
अश्व अड़ा पथ बीच खड़ा न मुड़ा न टरा अटका बिन काज
सोच रहा मन में असवार यहाँ इसमे कछु है अब राज
बेदम है यह ग्रीष्म प्रभाव चले जब सद्य मिले जल आज
मत्तगयन्द (मालती) सवैया (7 भगण + 2 गुरु) 23 वर्ण
बीत बसंत गयो जब से सखि तेज प्रभाकर ने हठि ठानी
मादकता अरु शीतलता सब आतप तेज सु मध्य सिरानी
उष्ण हुआ सब वात बिना श्रम देह समस्त पसीजत पानी
सूखत कंठ बुझात न प्यास जु चक्रत लूक हवा हहरानी
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
अर्थात अवधी का ’अरुझना’ भोजपुरी तक आते-आते ’अझुराना’ हो जाता है. जैसे, ’उनकर बतिया काहें अझुरा गइलऽ ?’
तांगा (Tonga) वाला अनुभव सुन कर अच्छा लगा.. :-))
सादर
आ० सौरभ जी
अरुझाय गए ही सही है i सही शब्द उलझना है जिसे हमारे यहाँ अवधी में अरझना या अरुझना कहते हैं --दृग उरझत टूटत कुटुम
यह घोड़े वाली बात सत्य घटना है i हमने गांव से ही तांगा कर लिया पर वह घोड़ा जोअडा तो फिर टस से मस नहीं हुआ . निदान दूसरा घोड़ा लाया गया तब यात्रा शुरू हुयी . सादर .
आदरणीय गोपाल नारायनजी, किस दुनिया में ले गये ! घोड़ा, चाबुक, असवार ! इस पहले सवैये का वातावरण ऐसा है, मानों मैं आज से दो सौ साल पीछे पहुँच गया हूँ.. :-))
इस सवैये के पहले पद में एक शब्द ’अरुझाय’ आया है. यह यही है या ’अझुराय’ है ? मैं ’अरुझाय’ का अर्थ नहीं समझ पा रहा हूँ.
और, अरुझाय गया सब घोटक साज या अरुझाय गये सब घोटक साज ?
व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध तो दूसरा ऑप्शन ही होगा.
दूसरे सवैये का वातवरण मनोहारी बन पड़ा है.. :-)))
उष्ण हुआ सब वात बिना श्रम देह समस्त पसीजत पानी
सूखत कंठ बुझात न प्यास जु चक्रत लूक हवा हहरानी
वाह ! ग्रीष्म का सुन्दर दृश्य !
वैसे आज की भाषा में सवैया प्रस्तुति हो तो आनन्द का मज़ा दूना हो जाय.
सादर शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना बहुत 2 बधाई आदरणीय सादर |
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