" मैंने तो बिना पैसे दिए ही शॉपिंग कर ली | वो बाजार में एक छोटी सी किराने की दुकान है न , आज वहां चली गयी थी | सामान लेने के बाद उसने पैसे लेने से इंकार कर दिया, बोला कि वो आपको जानता है और इसलिए पैसे नहीं लेगा "|
वो सोच में पड़ गया , अपने गाँव का छोटी जात का दुकानदार , जिसकी बेटी की शादी में १०१ रुपये देकर उसने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी |
आज वो अपने आप को बहुत छोटा महसूस कर रहा था |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर रचना आदरणीय विनय कुमार जी ....... छोटे और बड़े का वास्तविक अंतर समझाती खुबसूरत कथा!
सादर बधाई स्वीकार करे,
अभिमान को चरित्र सदैव पटकनी देता है . सुन्दर रचना
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