2122 2122 212
चाँदनी बदली को इतना भा गयी
पगली बदली चाँद को ही खा गयी
जिसको रोता देख हमने की मदद
वो ही बिपदा बन मेरे सर आ गयी
हक़ की मैंने की यहाँ है बात जब
गोली इक बन्दूक की दहला गयी
जिस घड़ी लव पे हँसी आयी मेरे
वो उसी पल अश्क से नहला गयी
जान से मारा मगर जब बच गया
आ मेरे घावों को वो सहला गयी
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आ0 आशुतोष भाई जी, प्रणाम! सुंदर गज़ल हुई है. दाद कुबूल करें. सादर
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