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तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या

१२१२    ११२२   ११२२   २२ 

तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या 

घिरा जो तम में मेरा घर तो सहर मुझको क्या 

हमें वो हीन कहें दींन  कहें या मुफलिस 

बशर तमाम जुदा सब कि नजर मुझको क्या 

बहार आयी चमन में है ये तो तुम देखो

खिजाँ नसीब है; मैं हूँ वो शजर, मुझको क्या 

जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा 

बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या 

मेरा नसीब तो फुटपाथ जमाने से रहे 

नसीब उन को महल हैं ये अगर मुझको क्या 

धुआं जो दिल में उठा उस को ग़ज़ल कहता हूँ 

करेगी कितना किसी दिल पे असर मुझको क्या 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 16, 2015 at 4:23pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकारें ...सभी शेर उम्दा ....सादर 

Comment by kanta roy on May 16, 2015 at 12:12pm
बेमिसाल शेरों से सजी यह गजल सच में बहुत खूब लगी । क्या बात कह दिया इस शेर में कि ....जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा 
बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या.......
लाजवाब ..... बधाई आपको आदरणीय डा आशुतोष मिश्रा जी
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2015 at 11:39am

जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा 

बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या ....  वाह! आदरणीय डा.आशुतोष जी. कमाल का शेर कहा आपने. दिली बधाई लीजिये

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 16, 2015 at 7:12am

आदरणीय मिथिलेश जी ..आदरणीय हरिप्रकाश जी ....रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद .सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on May 15, 2015 at 9:49pm

धुआं जो दिल में उठा उस को ग़ज़ल कहता हूँ 

करेगी कितना किसी दिल पे असर मुझको क्या.....आदरणीय  Dr Ashutosh Mishra जी बहुत सुन्दर ,  आ.मिथिलेश  भाई की  बात  ही दुहरा रहा हूँ ....आखिरी शेर ने तो दिल लूट लिया ! बधाई आपको  ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 15, 2015 at 2:58am

आदरणीय आशुतोष जी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दिल से दाद हाज़िर है 

आखिरी शेर ने तो दिल लूट लिया ----

धुआं जो दिल में उठा उस को ग़ज़ल कहता हूँ 

करेगी कितना किसी दिल पे असर मुझको क्या 

वाह वाह वाह 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 8:58pm

आदरणीय समर कबीर जी ..आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे और आपकी प्रतिक्रियाओं से मैं अपनी कमियों में सतत सुधार कर सकूं ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 8:56pm

आदरणीय श्याम नारायण जी रचना आपको पसंद आयी मेरा प्रयास सार्थक हुआ ..उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by Samar kabeer on May 14, 2015 at 5:57pm
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी ,आदाब,सुन्दर ग़ज़ल हेतु बधाई स्वीकार करें।
Comment by Shyam Narain Verma on May 14, 2015 at 5:41pm
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 

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