For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनमोल मोती : (लघुकथा)

" माँ .... काकी माँ ....बेटी ......दीदी ....", ---चारों ओर से पुकारती ये आवाज़ें सुधा के कानों में अमृत घोलती ।
" सुधा .....! ", --अचानक चौंक गई आवाज़ को सुनकर ।
" क्या लेने आए हो अब ? "-- उसको देखते ही सुधा की आँखों में रोष उतर आया था ।
" मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ सुधा ... मुझे माफ कर दो । " -- गिड़गिड़ा रहा था रवि ।
" क्यों वो चली गई क्या किसी और के साथ ; जिसके लिए मुझे छोड़ गए थे । "
" प्लीज़ सुधा ; मैं अपराधी हूँ तुम्हारा । घर चलकर जो भी सजा दोगी मंजूर है । "
इन्सानियत के नाते एक पल को सोच में पड़ गई सुधा ; पर जैसे ही उसकी नजर आसपास बेड पर लेटे उन मरीज़ों पर पड़ी जो जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहे थे उसने खुद को सम्भाल लिया ।
" माफ कीजिए मि. रवि ,अब मै वो कमजोर महिला नही जिसका आपने तिरस्कार किया था .....मेरा एक सुंदर घर परिवार है । आप जा सकते हैं यहाँ से । " -
बैरंग लिफाफे जैसे पैलेटिव केयर सेंटर से बाहर निकलता रवि सोच रहा था, क्या वही असहाय नन्ही बूँद आज इन सबके बीच अनमोल मोती बन चमक रही है जिसे मैं छोड़ गया था ?


' सुनंदा '
( मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 617

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sunanda jha on August 28, 2017 at 9:32pm
मेरी इस साधारण सी कथा को इतना मान देने के लिए आप सब अदीबों का दिल से शुक्रिया ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 28, 2017 at 7:57pm

वाह आदरणीया सुनंदा जी एक स्त्री का इस तरह से तटस्थ होकर निर्णय लेना , बहुत ही बढ़िया कथा और उद्देश्यपूर्ण कथा हुई है | हार्दिक बधाई |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 6:47pm

आदरणीया सुनन्दाजी, इस सशक्त तथा उद्येश्यपूर्ण लघुकथा पर हार्दिक बधाइयाँ स्वीकारें.
आपकी प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा रहेगी.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 28, 2015 at 11:09am

स्त्री अपना सर्वस्व त्याग कर जिसे अपनाए और वो ही उसे कमज़ोर समझ तिरस्कृत करे और परित्याग करदे उसका... फिर कभी लौट कर माफी मांगे गिडगिडाए  तब, तक ..कोइ जगह नहीं बचती उसके लिए स्त्री मन में.. अपने बारे में सोचने लगे तो कोइ मुकाम नहीं जहां तक स्त्री पहुँच ना सके, नन्ही बूँद को मोती सा ही चमकना होता है, बस अभिशाप की बेड़ियाँ टूटें तो सही.

नारी की आतंरिक शक्ति पर बहुत खूबसूरत लघुकथा प्रिय सुनंदा झा जी 

बहुत बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 27, 2015 at 10:40pm

बहुत बढ़िया लघुकथा 

हार्दिक बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 27, 2015 at 11:00am

बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है आदरणीया सुनंदा जी! हार्दिक बधाई!

Comment by Sudhir Dwivedi on May 27, 2015 at 9:26am

सुंदर प्रस्तुती ... आ. सुनन्दा जी 

Comment by kanta roy on May 27, 2015 at 6:13am
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीया सुनंदा जी ...... बधाई
Comment by sunanda jha on May 26, 2015 at 6:16pm
हौसला बढ़ाने के लिए तहेदिल से शुक्रिया आ.'बागी' जी ।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2015 at 1:46pm

कथा के पार्श्व में जो भी कथा हो किन्तु नायिका द्वारा एक कठिन निर्णय लेना ही कथा को उचाई प्रदान करता है, अच्छी लघुकथा हुई है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया सुनंदा झा जी. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Jul 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service