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अनमोल मोती : (लघुकथा)

" माँ .... काकी माँ ....बेटी ......दीदी ....", ---चारों ओर से पुकारती ये आवाज़ें सुधा के कानों में अमृत घोलती ।
" सुधा .....! ", --अचानक चौंक गई आवाज़ को सुनकर ।
" क्या लेने आए हो अब ? "-- उसको देखते ही सुधा की आँखों में रोष उतर आया था ।
" मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ सुधा ... मुझे माफ कर दो । " -- गिड़गिड़ा रहा था रवि ।
" क्यों वो चली गई क्या किसी और के साथ ; जिसके लिए मुझे छोड़ गए थे । "
" प्लीज़ सुधा ; मैं अपराधी हूँ तुम्हारा । घर चलकर जो भी सजा दोगी मंजूर है । "
इन्सानियत के नाते एक पल को सोच में पड़ गई सुधा ; पर जैसे ही उसकी नजर आसपास बेड पर लेटे उन मरीज़ों पर पड़ी जो जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहे थे उसने खुद को सम्भाल लिया ।
" माफ कीजिए मि. रवि ,अब मै वो कमजोर महिला नही जिसका आपने तिरस्कार किया था .....मेरा एक सुंदर घर परिवार है । आप जा सकते हैं यहाँ से । " -
बैरंग लिफाफे जैसे पैलेटिव केयर सेंटर से बाहर निकलता रवि सोच रहा था, क्या वही असहाय नन्ही बूँद आज इन सबके बीच अनमोल मोती बन चमक रही है जिसे मैं छोड़ गया था ?


' सुनंदा '
( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by sunanda jha on August 28, 2017 at 9:32pm
मेरी इस साधारण सी कथा को इतना मान देने के लिए आप सब अदीबों का दिल से शुक्रिया ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 28, 2017 at 7:57pm

वाह आदरणीया सुनंदा जी एक स्त्री का इस तरह से तटस्थ होकर निर्णय लेना , बहुत ही बढ़िया कथा और उद्देश्यपूर्ण कथा हुई है | हार्दिक बधाई |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 6:47pm

आदरणीया सुनन्दाजी, इस सशक्त तथा उद्येश्यपूर्ण लघुकथा पर हार्दिक बधाइयाँ स्वीकारें.
आपकी प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा रहेगी.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 28, 2015 at 11:09am

स्त्री अपना सर्वस्व त्याग कर जिसे अपनाए और वो ही उसे कमज़ोर समझ तिरस्कृत करे और परित्याग करदे उसका... फिर कभी लौट कर माफी मांगे गिडगिडाए  तब, तक ..कोइ जगह नहीं बचती उसके लिए स्त्री मन में.. अपने बारे में सोचने लगे तो कोइ मुकाम नहीं जहां तक स्त्री पहुँच ना सके, नन्ही बूँद को मोती सा ही चमकना होता है, बस अभिशाप की बेड़ियाँ टूटें तो सही.

नारी की आतंरिक शक्ति पर बहुत खूबसूरत लघुकथा प्रिय सुनंदा झा जी 

बहुत बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 27, 2015 at 10:40pm

बहुत बढ़िया लघुकथा 

हार्दिक बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 27, 2015 at 11:00am

बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है आदरणीया सुनंदा जी! हार्दिक बधाई!

Comment by Sudhir Dwivedi on May 27, 2015 at 9:26am

सुंदर प्रस्तुती ... आ. सुनन्दा जी 

Comment by kanta roy on May 27, 2015 at 6:13am
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीया सुनंदा जी ...... बधाई
Comment by sunanda jha on May 26, 2015 at 6:16pm
हौसला बढ़ाने के लिए तहेदिल से शुक्रिया आ.'बागी' जी ।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2015 at 1:46pm

कथा के पार्श्व में जो भी कथा हो किन्तु नायिका द्वारा एक कठिन निर्णय लेना ही कथा को उचाई प्रदान करता है, अच्छी लघुकथा हुई है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया सुनंदा झा जी. 

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