" माँ .... काकी माँ ....बेटी ......दीदी ....", ---चारों ओर से पुकारती ये आवाज़ें सुधा के कानों में अमृत घोलती ।
" सुधा .....! ", --अचानक चौंक गई आवाज़ को सुनकर ।
" क्या लेने आए हो अब ? "-- उसको देखते ही सुधा की आँखों में रोष उतर आया था ।
" मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ सुधा ... मुझे माफ कर दो । " -- गिड़गिड़ा रहा था रवि ।
" क्यों वो चली गई क्या किसी और के साथ ; जिसके लिए मुझे छोड़ गए थे । "
" प्लीज़ सुधा ; मैं अपराधी हूँ तुम्हारा । घर चलकर जो भी सजा दोगी मंजूर है । "
इन्सानियत के नाते एक पल को सोच में पड़ गई सुधा ; पर जैसे ही उसकी नजर आसपास बेड पर लेटे उन मरीज़ों पर पड़ी जो जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहे थे उसने खुद को सम्भाल लिया ।
" माफ कीजिए मि. रवि ,अब मै वो कमजोर महिला नही जिसका आपने तिरस्कार किया था .....मेरा एक सुंदर घर परिवार है । आप जा सकते हैं यहाँ से । " -
बैरंग लिफाफे जैसे पैलेटिव केयर सेंटर से बाहर निकलता रवि सोच रहा था, क्या वही असहाय नन्ही बूँद आज इन सबके बीच अनमोल मोती बन चमक रही है जिसे मैं छोड़ गया था ?
' सुनंदा '
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
वाह आदरणीया सुनंदा जी एक स्त्री का इस तरह से तटस्थ होकर निर्णय लेना , बहुत ही बढ़िया कथा और उद्देश्यपूर्ण कथा हुई है | हार्दिक बधाई |
आदरणीया सुनन्दाजी, इस सशक्त तथा उद्येश्यपूर्ण लघुकथा पर हार्दिक बधाइयाँ स्वीकारें.
आपकी प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा रहेगी.
सादर
स्त्री अपना सर्वस्व त्याग कर जिसे अपनाए और वो ही उसे कमज़ोर समझ तिरस्कृत करे और परित्याग करदे उसका... फिर कभी लौट कर माफी मांगे गिडगिडाए तब, तक ..कोइ जगह नहीं बचती उसके लिए स्त्री मन में.. अपने बारे में सोचने लगे तो कोइ मुकाम नहीं जहां तक स्त्री पहुँच ना सके, नन्ही बूँद को मोती सा ही चमकना होता है, बस अभिशाप की बेड़ियाँ टूटें तो सही.
नारी की आतंरिक शक्ति पर बहुत खूबसूरत लघुकथा प्रिय सुनंदा झा जी
बहुत बहुत बधाई
बहुत बढ़िया लघुकथा
हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है आदरणीया सुनंदा जी! हार्दिक बधाई!
सुंदर प्रस्तुती ... आ. सुनन्दा जी
कथा के पार्श्व में जो भी कथा हो किन्तु नायिका द्वारा एक कठिन निर्णय लेना ही कथा को उचाई प्रदान करता है, अच्छी लघुकथा हुई है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया सुनंदा झा जी.
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