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मजबूरी (लघुकथा )

"एइ जे ! हाजरा मोड़ जाएगा ? "

"हाँ साहेब, जाएँगे ।"

"किराया कितना ?"

"बीस टाका !"

"गला काटता है रे ...!! "

"नहीं साहेब , ऑटो तो पचास टाका लेगा ।"

"ओ ले शकता है, पेट्रोल से जो चलता है ना ।"

"ठीक है साहेब ...जो मर्जी दे दीजिएगा ।" पेट्रोल का कीमत सब को पता है, खून का कीमत? सोचता रिक्शा खींचने लगा ।

"बस बस ...! यहीं रोको ...!" दस रूपये रख कर चलता बना ।

जेब से दिन भर की कमाई निकाल कर हिसाब लगा रहा था बुधिया... रिक्शा का किराया देने के बाद भर पेट खा पाएगा ...या आज भी ....? रिक्शे वाले की आँखों में खून छलक रहा था सेठ के लिए ।

.

'सुनंदा ' (मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 2:32am

आपका स्वागत है, आदरणीया सुनन्दाजी.

मंच पर अभ्यासरत रहें. एक संवेदनशील प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएँ.

Comment by sunanda jha on May 26, 2015 at 6:47am
आप सब का दिल से शुक्रिया कथा पसंद करने के लिए । श्री वीर मेहता जी और विनय जी मैंने रिक्शे की ही संवेदना दर्शानी चाही है ।
Comment by shree suneel on May 24, 2015 at 10:11pm
रिक्शा का किराया देने के बाद भर पेट खा पाएगा ...या आज भी ....?
एक मजदूर की व्यथा इस पंक्ति में हीं उभर गई.. . आदरणीया सुनंदा जी, अच्छी लघु-कथा कही. अक्सर ये दृश्य दिख जाते हैं.
बधाई आपको.
Comment by kanta roy on May 24, 2015 at 12:37pm
मर्म से भरी हुई एक सार्थक लघुकथा के लिए बधाई आदरणीया सुनंदा जी । रिक्शे की आँखों से भी खून उतर सकता है सेठ के प्रति ..... रिक्शेवाले के भूखे पेट से ताल्लुकात तो वो भी रखता ही है । उसके वजूद को कायम रखने वाला ही जब भूखा रहे तो जायज है रिक्शे के आँखों में भी खून उतरना । आभार
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 24, 2015 at 9:42am

मजदूरों की मज़बूरी उनकी आँखों में झलकती है | सुंदर लघु कथा के लिए बधाई 

Comment by विनय कुमार on May 23, 2015 at 9:36pm

पहली रचना पढ़ी मैंने आपकी , बहुत प्रभावित किया । पर मैं भी आदरणीय वीर मेहता जी से सहमत हूँ । बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए..

Comment by विनोद खनगवाल on May 23, 2015 at 4:00pm
आदरणीया सुनंदा झा जी। अमीर द्वारा गरीब के आर्थिक शोषण को बहुत बढिया ढंग से प्रस्तुत किया है। बधाई स्वीकार करें विनोद खनगवाल की तरफ से।
Comment by Shyam Narain Verma on May 23, 2015 at 12:29pm
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 23, 2015 at 12:09pm

आदरणीय सुनंदा जी सुन्दर रचना..."पेट्रोल का कीमत सब को पता है, खून का कीमत?"  बहुत खूब लिखा.,...सादर बधाई.!

कथा की अंतिम पंक्ति में  //रिक्शे की आँखों में खून छलक रहा था सेठ के लिए ।//     शायद  रिक्शे की जगह रिक्शे वाला होगा ....... या फिर आपने  "रिक्शा" को ही इसके लिए प्रयुक्त किया कुछ स्पस्ट नहीं...

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 23, 2015 at 12:07pm

अच्छी कथा i  सुन्दर प्रयास ..

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