मात्रिक बहर 22/22/22/22/22/22/22/2
क्या क्या सपनें बुन लेते थे छोटी छोटी बातों में
क़िस्मत ने कुछ और लिखा था लेकिन अपने हाथों में.
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कैसे कैसे खेल थे जिन में बचपन उलझा रहता था
मोटे मोटे आँसू थे उन सच्ची झूठी मातों में.
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कितने प्यारे दिन थे जब हम खोए खोए रहते थे
लड़ते भिड़ते प्यार जताते खट्टी मीठी बातों में.
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एक ये मौसम, ख़ुश्क हवा ने दिल में डेरा डाला है
एक वो ऋत थी, साथ तुम्हारे भीगे थे बरसातों में.
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एक समय तो ख़्वाबों में भी साथ तुम्हारा होता था
लेकिन आवारा से फ़िरते हैं अब तन्हा रातों में.
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थोड़े इसके थोड़े उसके लेकिन ख़ुद के कुछ भी नहीं
धीरे धीरे रोज़ ख़ज़ाना लुटता है खैरातों में.
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इन साँसों में समा गयी है गीली मेहंदी की ख़ुशबू
वक़्ते रुख्सत हाथ था उनका “नूर” हमारे हाथों में
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया आ. मिथिलेश जी ..
आपसे सराहना पा कर गद्गद हुआ जाता हूँ...
आपकी ग़ज़ल की प्रतीक्षा है
आभार
शुक्रिया आ. सौरभ सर .
झूम तो मैं रहा हूँ आपसे दाद पा कर ...ये कमाल तो बहर का भी है
शुक्रिया आ. जान गोरखपुरी साहब
शुक्रिया आ. दिनेश जी
शुक्रिया आ. समर कबीर साहब
आदरणीय नीलेश जी
अब क्या रोज़ तारीफ़ लिखवाईयेगा
कमाल कमाल कमाल
भाई आपका दिमाग है या ग़ज़लों का कारखाना
गज़ब की उत्पादनशील इकाई है
आपके दिलो-दिमाग का कमाल देखकर चकराने लगा हूँ.
इन दिनों आदरणीय समर जी और आप चौके छक्के लगा रहे है, इधर बैट उठाने की हिम्मत नहीं हो रही है.
इन दो अशआर पर दिल से दाद और ढेर सारी दुआ -
कैसे कैसे खेल थे जिन में बचपन उलझा रहता था
मोटे मोटे आँसू थे उन सच्ची झूठी मातों में.
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कितने प्यारे दिन थे जब हम खोए खोए रहते थे
लड़ते भिड़ते प्यार जताते खट्टी मीठी बातों में.
आप कमाल हैं, साहब ..
आपकी संवेदनशील पंक्तियों को पढ़ कर झूम जाता हूँ, आदरणीय नीलेश भाई.
निम्नलिखित अश’आर का हो जाना दिल को कुछ और आत्मीय हुआ महसूस कर रहा है -
कैसे कैसे खेल थे जिन में बचपन उलझा रहता था
मोटे मोटे आँसू थे उन सच्ची झूठी मातों में.
एक समय तो ख़्वाबों में भी साथ तुम्हारा होता था
लेकिन आवारा से फ़िरते हैं अब तन्हा रातों में.
इन साँसों में समा गयी है गीली मेहंदी की ख़ुशबू
वक़्ते रुख्सत हाथ था उनका “नूर” हमारे हाथों में
दाद दाद दाद
इन साँसों में समा गयी है गीली मेहंदी की ख़ुशबू
वक़्ते रुख्सत हाथ था उनका “नूर” हमारे हाथों में
वाह आ० बहुत ही पुरनूर गजल हुयी है!शेर दर शेर दाद कबूल फरमाएं! मक्ता तीर-ए-नीमकश की तरह समा गया है दिल में!
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