For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-नूर -अब ख़लाओं की मेज़बानी दे.

२१२२/१२१२/२२ (११२)
या ख़ुदा ऐसी ला-मकानी दे
अब ख़लाओं की मेज़बानी दे.
.
कितना आवारा हो गया हूँ मैं
ज़िन्दगी को कोई मआनी दे.
.
यूँ न भटका मुझे सराबों में
अपने होने की कुछ निशानी दे.      
.
सच मेरा कोई मानता ही नहीं
सच लगे ऐसी इक कहानी दे.
.
मेरी ग़ज़लों की क्यारी सूख गयी  
मेरी ग़ज़लों को थोडा पानी दे.
.
“नूर” को फ़िक्र दे नई मौला
पर नज़र उस को तू पुरानी दे.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 828

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 9:06am

शुक्रिया आ. वीनस जी..जो यहाँ से सीखा है..यहीं लौटा रहा हूँ 
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 9:05am

शुक्रिया आ. सौरभ सर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 9:05am

शुक्रिया आ. मोहन जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 9:05am

शुक्रिया आ. जान गोरखपुरी साहब 

Comment by shree suneel on June 2, 2015 at 9:13pm
कितना आवारा हो गया हूँ मैं
ज़िन्दगी को कोई मआनी दे... व्वाहह!!
ख़ूब.. शानदार..बेहतरीन. .
बधाई.. बधाई. .
Comment by वीनस केसरी on June 2, 2015 at 7:43pm

यूँ न भटका मुझे सराबों में
अपने होने की कुछ निशानी दे.   

एक के बाद एक ... खजाने से नगीने पेश कर रहे हैं ...
क्या कहने ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2015 at 1:35pm

मेरी ग़ज़लों की क्यारी सूख गयी  ....... और तब ये इतनी लहलहायी हुई दिख रही है ! सुबहानअल्लाह !  दिल से दाद लीजिये, आदरणीय..

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 2, 2015 at 11:05am

हर शेर बढ़िया ....बहुत खूब ...सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 1, 2015 at 10:57pm

यूँ न भटका मुझे सराबों में
अपने होने की कुछ निशानी दे.      
.क्या बात है आ० नूर सर!हार्दिक बधाई!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 1, 2015 at 10:30pm

शुक्रिया आ. महर्षि जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service