पल्लू लहरा देते हैं वो हवा का रूख़ देख कर
बीमार हो जाते हैं हम भी हसीं दवा देख कर !
यूँ तो हम तुम्हारे सिवा किसी और पे मरते नहीं
महफ़िल हसीनाओं की हो तो शिरकत से डरते नहीं !
तूने अगर दिल में अपने मुझे घर दिया होता
तन्हाईओं की बारिशों से मैं ना गल गया होता !
सुना है मिजाज़ गर्म और नज़र तिरछी है उनकी
'इंतज़ार' हम कहाँ मरते हैं हसीं बद दुआओं से उनकी !
तुम बिन ख़त्म हो जायेगी तिलस्मी दुनियाँ मेरी
अधभरे पन्नों में खो जायेगी ये अधूरी कहानी मेरी !
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Samar kabeer जी शुक्रिया ...आप सही कह रहे हैं ...गिनती तो सीख सकता हूँ मगर बिना उर्दू के ग़ज़ल गजल ही रह जायेगी ...फिर भी कोशिश करूँगा वक़्त के साथ ....सादर
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी हार्दिक आभार ...सादर
आदरणीया rajesh kumari जी तहे दिल से शुक्रिया ...सादर
अच्छी प्रस्तुति है बधाई आपको आ० मोहन जी .
अच्छी प्रस्तुति है बधाई आपको आ० मोहन जी .
अच्छी प्रस्तुति है बधाई आपको आ० मोहन जी .
सुना है मिजाज़ गर्म और नज़र तिरछी है उनकी
'इंतज़ार' हम कहाँ मरते हैं हसीं बद दुआओं से उनकी !
क्या बात है आदरणीय!हार्दिक बधाई! सादर!
मन-भावक। बधाई, सादर। "
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी आप की टिप्पणी मेरे पेज पर है मगर यहाँ नहीं किसी तकनीकी समस्या की वजह से ....आप का बहुत बहुत धन्यवाद ...सादर
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